Shubhra Varshney

Inspirational

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Shubhra Varshney

Inspirational

कुंती मैडम

कुंती मैडम

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कुछ लोग जीवन में ऐसे मिलते हैं जो अपनी यादें अमिट छोड़ जाते हैं।आइए अपनी यादों के गलियारों में मैं आपको एक ऐसी शख्सियत से मुलाकात करा लाऊं जिनके बारे में आप पढ़कर कहेंगे कुछ भी खास नहीं पर कुछ तो बात थी उनमें।यह थी वार्ड आया कुंती देवी जो मेरे जीवन में आये महान शिक्षकों में एक थी।मेरी इंटर्नशिप में मेरी सबसे पहली मुलाकात इन्हीं से हुई ।तीन महीने उन्हीं के साथ काम सीखना था।उनकी बाईं और मेरी सीट लगा दी गई या कहिए कि वह जगह किसी के आने का इंतजार कर रही थी जो मेरे आने से भर गई।

बेहद ही साधारण चेहरे वाली जिसे एक नजर में कोई देखकर बदसूरत कह दे तो कोई आश्चर्य नहीं।लेकिन उनके मुस्कुराहट भरे चेहरे को उस श्रेणी में रखा जा सकता था जो देखते ही देखते किसी को भी सुंदर लगने लगे।किसी को देखते ही वह उन्मुक्त हंसी हंस देती वह हंसी जो किसी की भी उनमें दिलचस्पी पैदा कर सकती थी ।भारी शरीर पर हमेशा अदब से बांधी सूती धोती और करीने से बांधे तेल से चिपड़े बाल उनकी परंपरागत छवि का प्रतीक थे।शुरुआती दिनों में इंचार्ज सर के भय के कारण मैं अति शीघ्र पहुंचने की कोशिश करती पर उनसे एक कदम पीछे ही रहती।

न जाने किस मिट्टी की बनी थी कि सुबह सब घर के काम निपटा कर , ठीक 9:00 बजे हंसती मुस्कुराती अपनी मेज पर उपस्थित मिलती।मुझमें और उनमें कम से कम 25 साल की उम्र का अंतर था ही फिर भी उनकी कार्यशैली व मेहनत मुझे विस्मय में डाल देती।सुबह के अभिवादन के बाद मेरे पूछने पर की कैसी हैं उनका पहला उत्तर होता, "सब बढ़िया है।"यह उनका तकिया कलाम था और दिन में दस बीस बार तो है इसका प्रयोग कर ही लेती थी।

वे अपने काम को सजगता से करती हुई तेज कदमों से चलते हुए करती ।बेहद ईमानदार और कर्मठ होने के बावजूद वह इंचार्ज सर की गुड लिस्ट में नहीं थी।

मैं जल्दी ही जान गई थी कि अपने कार्य का श्रेय लेना उन्हें नहीं आता था और अपनी बात भी ढंग से नहीं कह पाती थी।अपने सीधेपन की वजह से वे किसी भी केस को विस्तार से जानने की कोशिश करतीं, जो और स्टाफ में नदारद था।अपने इसी गुण की वजह से वह बिना कारण बाकी स्टाफ के हास्य का पात्र बनती।मुझे आज भी सोच कर ग्लानि होती है कि मैं उस समय उस समय स्टाफ की सोच का एक हिस्सा थी।पता नहीं उन्होंने मुझमें कौन सा आत्मीयता का भाव देखा था, वह किसी भी विषय पर मुझसे घंटों बातें करती रहती।एक बात तो हमने कॉमन थी वह भी मेरी तरह संगीत व प्रकृति प्रेमी थी।उनका संगीत का ज्ञान कभी-कभी मुझे आश्चर्य में डाल देता कैसे इस नीरस दिखने वाली महिला की आत्मा इतनी सरस है।

हम किसी बात का सूत्र पकड़ते और उसे पकड़े पकड़े ही कई जगह घूम आते ।स्टाफ में किसी की भी गलती होने पर अगर रजिस्टर में कुछ गलती होती तो इंचार्ज सर की सीधी सीधी टारगेट बनती वह।इसी प्रकार एक बार आई हुई दवाइयों और खर्चे का मिलान ना होने पर जब इंचार्ज सर उन्हें बुरी तरह डांट रहे थे तो डांट खाकर जब वह वापस मेज पर आई और मैंने उनसे पूछा, "क्या हुआ?"तो वह अपनी चिर परिचित हंसी के साथ बोली , "अरे कुछ नहीं सब बढ़िया है।"

न जाने किस मिट्टी की बनी थी ना तो साथ के स्टाफ का कुछ भी गलत कहना उन्हें बुरा लगता था और ना ही सर की डांट का बहुत नकारात्मक असर होता था।अपने पति से उन्हें काफी स्नेह था यह बात उनकी बातों में अक्सर झलकती थी।एक दिन उन्हें ढेरों खाने पीने का सामान और डिस्पोजेबल बर्तन लिए देखकर मैं आश्चर्यचकित रह गई।सभी स्टाफ को उन्होंने लाया हुआ सामान बड़े प्रेम से वितरित किया, पूछने पर बड़े शरमाते हुए बताया कि आज उनके पति का जन्मदिन था।उन्होंने तरह तरह के खाने के आइटम लाने में बहुत खर्चा किया था।

वह अपने सीधी पल से सबको खुशी खुशी खिला रही थी और लोग उनकी हंसी बना रहे थे।मेरे साथ इंटर्नशिप कर रही मेरी मित्र ने मुझसे कहा कि, "मैडम तो बहुत सारा सामान ले आई। मिलकर इनके हस्बैंड को गिफ्ट पहुंचा देंगे।"मैंने कहा, "अरे खाओ, गिफ्ट की क्या जरूरत है, कौन सा हमें यहां पर ज्यादा दिन रहना है।"पीछे कुंती मैडम हमारी बातें सुन रही थीं।मुझसे भावनात्मक रूप से काफी जुड़ी होने के कारण वह मुझसे ऐसे उत्तर की अपेक्षा नहीं कर रही थी।मुझे भी तुरंत समझ में आ गया था कि मैंने गलत कह दिया था।अगले कुछ दिन मैंने जान पूछ कर उनसे आंखें बचाने की कोशिश की शायद उन्होंने भी।कुछ दिनों के लिए भी छुट्टी पर चली गई थी उनके बेटे को वायरल फीवर हो गया था।

इस बीच उनकी कमी ने मुझे एहसास दिला दिया कि वे उन दिनों मेरे लिए कितने खास हो गई थीं।जब वह लौटीं तो आगे बढ़कर मैंने उनका हालचाल पूछा।शुरुआती झिझक के बाद वह पूर्ववत खिलखिलाने लगी।हमारे बीच सब कुछ सामान्य हो गया था।इसी तरह तीन महीने बीत गए और मेरा वहां समय भी पूरा हो गया।जीवन की आपाधापी में मुझे फिर सालों साल दोबारा वहां जाने का अवसर नहीं मिला।करीब दस साल बाद जब मैं किसी काम के सिलसिले में उस हॉस्पिटल पहुंची।

सरकारी बिल्डिंग होने के कारण वहां के ढांचे में कोई खास परिवर्तन नहीं आया था दो चार परिवर्तनों की बात छोड़ दें तो सारी व्यवस्था पूर्ववत ही थी।

तुम मुझे कुंती मैडम की याद हो आई। मेरे पूछने पर पता चला कि दो साल पहले अचानक हृदयाघात से उनका निधन हो गया था।मैं स्तब्ध वहां पहुंच गई जहां पर में बैठा करती थी।चेहरे नये थे पर वहां की यादें पुरानी थी। मेरी आंखें नम हो आई थी।

उनकी मेज पर जाकर जब मैंने स्पर्श किया तो लगा जैसे वे उठकर मुस्कुरा उठेंगी और उनकी चमकीली मुस्कान बोल उठेगी, "सब बढ़िया है।"

मेरे जीवन में कुंती मैडम मुझे वह सिखा गई थी जो मुझे किताबों में सीखने को नहीं मिला था वह था हमेशा हर परिस्थिति में संतुलित और संयमित रहने का पाठ।



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