क्या तुम सब भूल गए ?

क्या तुम सब भूल गए ?

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कभी न कभी तो याद आता होऊंगा न मै तुम्हें..

मेरा नाम कहीं लिखा हुआ देखकर या किसी से सुनकर,

अचानक कहीं फेसबुक पर मेरी तस्वीर देखकर,

क्या मेरे साथ गुज़ारे हुए वक्त की झलक किसी तस्वीर की तरह आंखों में दिखाई देती है ?


क्या याद हूं मैं तुम्हे ?

या सबकुछ भूल गए हो ?


Dear तुम,


आज कई दिनों के बाद मै तुम पर कुछ लिख रहा हूं, बात ये नहीं कि मै तुम्हें भूल गया हूं या जानबूझ कर कुछ लिखता हूं।।


दरअसल, इस वक्त मै तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था...

हां, ये इंतज़ार महज़ एक कल्पना है, एक imagination है ।

लेकिन ये शिद्दत असलियत है।


जिस तरह से उस शाम की तरह तुम्हारा जाना भी एक सच था,

और अब कभी नहीं लौटोगे, ये भी एक सच है।


ठीक उसी तरह, मेरा ये इंतज़ार भी एक सच है।


खैर, ये सारी बातें बाद में....


काश, तुम्हे सारी बातें याद हों...

जैसे, फोन पर मेरा हर 2 मिनट में तुमसे पूंछना की - और, कैसे हो ?


तुम्हारा हंसकर जवाब देना - बस जैसे तुम हो।


अच्छा वो तुम्हें याद है...

जब मैंने तुम्हे एक डांट दिया था किसी बात के लिए -


और मेरे मनाने पर तुमने रोते हुए कहा था - भला मैं तुम्हारी कौन हूं ?


ये सब तुम्हे याद तो होगा न ?


काश, तुम नए लोगों के साथ रहकर भी इन सारी बातों को भूल न पाए हो।


सुनो, एक बात याद है तुम्हे ?


जब तुम मेरे घर आए थे , तो तुमने मुझसे मेरी कविताओं वाली डायरी को मुझसे मांगा था -


और मैंने देने से मना कर दिया था -----


तुमने न देने का कारण पूंछा और मैंने कहा कि --

बस यही तो एक चीज़ है जिसमें सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी बातें लिखी हुई हैं।

इसे मेरे पास ही रहने दो।


और तुमने मुस्कुरा दिया।


जब तुम जाने को होते थे तो मैं तुम्हें अक्सर पीछे से बुलाकर कहता ---- अच्छा सुनो ?


तुम - क्या ?


मैं - कुछ नहीं, बस यूं ही।


चलो अब एक अंतिम सवाल ---


वो रात याद है जब लगभग 10 बजे हुए थे और तुमसे मुझसे बताया की - 

अगले दिन सुबह तुम्हारे लिए घरवाले लड़का देखने जा रहे हैं!!!


क्या तुम सब भूल गए ?



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