मेरे बाबा, मेरी प्रेरणा
मेरे बाबा, मेरी प्रेरणा
इतिहास सभी का होता है। जीवन सभी का है ,हर व्यक्ति अपने जीवन में संघर्ष करता है । संघर्ष के बिना जीवन है ही नहीं। फर्क बस इतना है ,किसी का ज्यादा होता है ,किसी का कम । किसी का छिप जाता है, किसी का छप जाता है। होता सभी का है। मुझे आज भी एक चेहरा बिल्कुल साफ नजर आता है, जो मेरे दिल में आज तक जिंदा है। वह चेहरा है मेरे बाबा । देहांत हुए 8 साल हो गए ,पर आज भी वह इस कदर तक जिंदा है मुझ में, कि जब भी रात को आंख बंद करती हूं तो उन्हीं का चेहरा मेरे सामने आ जाता है । जब भी हताशा और निराशा होने लगती है, या कभी रोने का मन भी होता है, तो सिर्फ और सिर्फ उन्हीं की याद आती है । बहुत याद आती है। मार्गदर्शक इसलिए नहीं कि मैं उनको हर समय याद करती हूं ,अभि प्रेरित होती हूं। वह इसलिए मेरे मार्गदर्शक है कि उनका जीवन अतुल्य संकटों और संघर्षों की कहानी है । क्या कहा है क्या किया है और क्या मिसाल बने हैं कठिन परिस्थितियों के बावजूद भी..
मेरे बाबा अपने पिताजी के एक ही पुत्र है। उनकी 5 बहने हैं । मेरे पर दादी दादा जी का कम उम्र में ही विवाह हो गया था। उन्होंने तीन शादियां की थी । सबसे बड़ी मां की एक पुत्री हुई । उसके बाद दूसरी मां निसंतान रही, और तीसरी मां की 4 बेटियां और मेरे बाबा हुए। एक गरीब परिवार जो बड़ी मुश्किल से अपना भरण-पोषण करता था । सुबह खाने के बाद सोचना पड़ता कि ना जाने शाम को भोजन मिलेगा भी या यूं ही सोना पड़ेगा । ऐसे परिवार में पले बढ़े । परदादा जी लुधियाना में गोलगप्पे का ठेला लगाया करते थे, और कभी- कभी कोई दूसरा रोजगार ढूंढ कर अठन्नी चवन्नी कमाकर बड़ी मुश्किल से भोजन पानी की व्यवस्था करते,शिक्षा का धन बटोर पाते अपने बच्चों के लिए। बाबा को पढ़ाई लिखाई में बहुत रूचि थी । वे दिन रात पढ़ने के बारे में ही सोचते और कठिन परिस्थितियों और घर की परेशानियों के बीच अपनी शिक्षा को सही मुकाम देते। पुराने जमाने में बिजली की बहुत समस्या रहती थी । तो वह रात रात को सड़क की लाइटों की नीचे पढ़ाई किया करते थे । पढ़ाई के प्रति इतना जुनून उनकी परिस्थितियों ने भी पैदा कर दिया था।भुआ की शादी के लिए घर में कौड़ी भी नहीं थी ,तो वे उधार लेने गांव में गए ,तो सब ने उधार देने से मना कर दिया । बड़ी मुश्किल हुई । धन की लाचारी भी इंसान को मजबूर कर देती है । पैसा भगवान नहीं पर, भगवान से कम भी नहीं है। धर्म के बिना व्यक्ति निस्सहाय हो जाता है । काफी ठोकरे खानी पड़ती है। उधार के लिए हाथ फैलाना पड़ता है। और इस बीच व्यक्ति का आत्म सम्मान..........
सबसे बड़ा गहना और पौरुष होता है आत्म सम्मान । धन की लाचारी ने उन्हें अंदर से बहुत मजबूत बना दिया । लाचारी इंसान को भीतर से तोड़ भी देती है तो आंतरिक शक्ति को जोड़ भी देती हैै। वही उनके साथ हुआ। परिस्थितियों की मार से टूटे नहीं ,बल्कि उन्होंने खुद को अपने लक्ष्यों के प्रति और अधिक दृढ़ बना दििया। मजबूत हो गए वो।नींद चैन का एहसास खत्म हो जाता है, जब दिल में जुनून होता है ।वही जुनून उन्होंने अपने अंदर पैदा कर लिया थाा। चटनी रोटी खाकर मस्त रहते। गृह कलेश या अन्य सभी समस्याओं से दूर किसी पेड़ पर जाकर बैठ जााते, और वहां अपनी पढ़ाई करते शांति से बैठ कर । ताकि उन्हें वहां कोई परेशान ना करें ,और उनका पढ़ाई से ध्यान भंग नहीं करेंं। जिस उम्र में आजकल के बच्चे मौज मस्ती और अन्य चीजों में भटकते हैं ,उस उम्र मे उन्होंने किताबो से यारी दोस्ती की । उनको अपना ऐशो आराम बनाया । पूरी पूरी रात को सड़क पर एक बल्ब के नीचे निकाल दिया करते थे । पता था उन्हें संघर्ष वन में किसी के सामने हाथ ना फैलाने पड़े इसलिए संघर्ष किया उन्होंने आत्म सम्मान और स्वाभिमान पर चोट इंसान को सशक्त बना देती है। लड़ना सिखा देती है । काबिलियत और कठिन परिश्रम का रास्ता भी बता देती है । क्या मुश्किल और क्या सरल खेल है यह नहीं समझना होता। बस खेलना है यही समझ आता है । वही उन्होंने भी किया। समय की चादर ओढ़ कर खुद को उसी में समेट लिया, और लगे रहे अंदर ही अंदर अपने आप को गढ़ने।
तत्पश्चात उनकी सफलता का रंग दिखने लगा। उन्होंने बीएएमएस की प्रारंभिक परीक्षा उत्तरण कर ली। पर समस्या वहीं आ खड़ी होती है ना खाने को ढंग। ना पढ़ने की फीस, ना पहनने को नए वस्त्र ,ना पढ़ने के लिए पैसे ना जाने का किराया। बड़ी मुश्किल से थोड़ा धन इकट्ठा किया ,और सफर करके पंजाब गए बुआ के पास । वहां से पैसे और फूफा जी के कपड़े और जूते लाए भुआ के दिए हुए । क्योंकि वे सामर्थ्य वान थे।उस समय के अच्छी खासी व्यापारी थे।बहुत सहायता की बुआ ने अपने भाई को उठाने में। फिर बड़ी मुश्किल से धन इकट्ठा कर उन्होंने कॉलेज में प्रवेश लिया । वहां कड़ी मेहनत की । व काफी पढ़ाई की । जड़ी बूटियों का ज्ञान इकट्ठा करने के लिए जंगलों में जाते, और पहाड़ों में जाते। खूब सारी जानकारियां इकट्ठी कर कर उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की ,और 21 वर्ष की उम्र में ही बन गए वैद्य वैद्य राधेश्याम शर्मा।
मैं एक विद्यार्थी हूं । एक विद्यार्थी की तरह ही प्रेरित हो सकती हूं ,और उसी रूप में मैं बता सकती हूं ,संघर्ष की परिभाषा। जीवन की परिभाषा तो बड़ी लंबी चौड़ी है, और यही कथा मेरा सपना भी है।अंततःइस संघर्ष की आग से लड़ता हुआ बालक यानी कि मेरे बाबा अपने मुकाम पर पहुंच गए । अब भी परेशानी थी ड्यूटी पर जाने के लिए भी उन्हें धन की जरूरत थी । क्योंकि उनकी नौकरी हरियाणा से राजस्थान के टोंक जिले के एक गांव में लगी । तब बड़े बाबा की सहायता से और अजमेर वाले बुआ जी की थी अभी थोड़े धन से उन्होंने अपनी ड्यूटी पर कदम रखा। इसके बाद उन्हें आर्थिक तंगी से तो मुक्ति मिल गई, पर अभी का संघर्ष और भी कठिन या लाजवाब था। उनकी निस्वार्थ सेवा की भावना उनके मन का और उनका सबसे अच्छा गहना था । घर घर जाकर वह मरीजों का इलाज करते थे। ये श्वास बन चुका था वह आधी आधी रात तक को अपना खेत उठाया मरीजों का इलाज करने जाया करती थी आने की बात किराए के मकान में रहे थे मां गांव में अंजान अंजान शहर और अनजान लोगों के दिलों में उन्होंने एक सम्मानजनक स्थान पा लिया था एक ऑफिसर के रूप में उनका अस्तित्व में बहुत अच्छे से याद है , आज भी जहां जाते हैं । उनके गुणगान सुनने में आते हैं । उन्होंने खुद से लोगों की सेवा की ,और अपने आप को इतना सक्षम बनाया कि वे दूसरों की भी सहायता कर पाए । जब भी कभी जिला स्तर पर या राज्य स्तर पर डॉक्टर की मीटिंग होती तब मेरे बाबा एक खासी चर्चा की पात्र बनते। काबिले तारीफ मिलती है।
जिंदगी भर सेवा करते करते, मां की तबीयत भी ठीक नहीं रहती थी तब उनकी देखभाल करने में ,अपने बच्चों को पालते संभालते ,हम पोते पोतियो को प्यार देते देते, हमारा सूरज हमेशा के लिए अस्त हो गया । अपने अधूरे सपनों के साथ ही । उनके कई सपने थे जो उन्होंने संजोकर रखे थे। बोलते थे वह रिटायरमेंट के बाद मैं खेती करूंगा । खूब मेहनत करके गांव में एक हॉस्पिटल खोलूंगा । लोगों की सेवा के लिए खुद का मकान भी बनाए 3 साल ही हुए थे ।40 सालों तक किराए के मकान में रहे थे । बाबा खुद की बनाई हुई झोपड़ी में भी नहीं रह पाए बीमार हो गए थे । अब उनके सारे सपने पूरे करने हैं मुझे।बन के दिखाऊंगीऑफिसर मैं । बनकर दिखाऊंगी। वह हमेशा मुझे दिखते हैं इसका मतलब मुझ पर आशीर्वाद है उनका। वह मेरे साथ है । मेरे पास है।मेरी प्रेरणा बनकर। मेरा उत्साह बनकर।