मेरी दिवाली
मेरी दिवाली
इस वर्ष की दिपावली का उत्साह पटाखों, मिठाईयों,सजावट के सामानों की दुकानों सहित विभिन्न प्रकार के बाजारों की रौनक चरम पर है।इसी क्रम में परंपरागत रीति के अनुसार दीपावली से पहले आज धन त्रयोदशी अर्थात धनतेरस के दिन गृहस्थों के लिए कुछ धातुगत् वस्तुएं खरीदने का रिवाज है।इसके लिए आप सोने-चांदी आदि के जेवरात या कांसे-पीतल के बर्तन खरीद सकते हैं। यदि आप बहुत ही निर्धन हैं तो कम से कम एक स्टील का बर्तन तो आपको खरीदना ही चाहिए।और यदि आप इतना भी नहीं कर सकते तो अवश्य ही आप भाग्यहीन हैं।लक्ष्मी जी का आपसे रूठना तय है।
हाय रे रिवाज..!पता है.? इस रिवाज को लेकर कितनों को मानसिक उत्पीड़न से गुजरना पड़ता है।घर परिवार में क्लेश का कारण बनना पड़ता है उस गृहस्वामी को जिनकी आमदनी बिल्कुल न्यूनतम है।और बात यहीं पर खत्म हो जाती तो कोई बात न थी। यह तो दिखावे की दुनिया हैं साहब अगर कुछ प्रभावशाली वस्तु नहीं खरीदेंगे तो लोग क्या कहेंगे।बस यहीं मार खा जाता है गरीब आदमी।
धनतेरस के दिन धातु निर्मित लक्ष्मी-गणेश या कुबेर जी की मूर्ति या फिर जिनके पास पर्याप्त रूपये-पैसे होते थे, सगुण के तौर पर इनकी आकृतियां अंकित सोने-चांदी के सिक्के खरीदने का रिवाज था और तब यह रिवाज समाज के कुछ ही वर्गों तक सीमित था मगर अब तो यह रिवाज सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में भी फ़ैल चुका है।
धनतेरस मनाने की होड़ में आदमी धर्मांध हो बाजारों में कूद पड़ते हैं जिसका फायदा उठाते हुए दुकानदार वर्ग मनमानी ढंग से इन्हें लुटते हैं।
मेेेरे मन में भी इस परंपरा के प्रति श्रद्धा जागी।सोचा इस बार मैं भी थोड़ा माता लक्ष्मी का कृपा पात्र बनूं इसलिए अपनी योग्यतानुसार धनतेरस की खरीदारी करने निकल पड़ा।
सर्राफा बाजार जाने की बात तो मैं सोच ही नहीं सकता था।वाहन संबंधित वस्तुएं या महंगे इलैक्ट्रिक, इलैक्ट्रोनिक चीजें खरीदने की भी मुझमें हिम्मत नहीं थी।अब रही कोई बर्तन वगैरह खरीदने की बात सो मैंने बर्तन बाजार का रूख किया। वहां पहुंचा तो देखा कि भीड़ काफी है। फिर भी मैंने ट्राई किया।जो बर्तन दो दिन पहले सौ के होते थे आज सीधे दो सौ के थे। काफी सोचने के बाद मैंने तय किया कि फिजूल में सौ रूपये देना कहां की बुद्धिमानी है, इसलिए मैं वहां से भी टरका।
अंततोगत्वा मायूस होकर मैं सोच ही रहा था कि अब क्या किया जाय कि तभी इस महान उलझन से बाहर निकालने के लिए मुझे मेरा हितैषी मित्र मिल गया। वह मेरी ही तरफ आ रहा था।आते ही उसने पूछा कि क्या खरीदा.? मैं उसे क्या बताता। फिर भी काफी झिझककर मैंने उसे सारा हाल कह सुनाया।वह हंसा और चुटकियों में समाधान दे दिया।बोला यार तुम किस फेर में पड़े हो।धनतेरस में झाड़ू खरीदना सबसे शुभ होता है और मैं वही खरीदने जा रहा हूं। तुम्हें भी ये शुभ कार्य करना हो तो चलो। फिर क्या था। मैं भी उसके पीछे-पीछ हो लिया।