स्वर्ग का सुख
स्वर्ग का सुख
समस्त सांसारिक विषय भोगों के रहते अगर मनुष्य असंतुष्ट हो अतृप्त हो मन अशांत हो तो इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है
मन की शांति धन-दौलत और नाना प्रकार के सुख-सुविधाओं से कदापि नहीं मिल सकती है। यह मिल सकती है तो मात्र आत्मिक ज्ञान से, क्योंकि अक्सर यह देखा गया है कि कभी -कभी एक धनाढ्य व्यक्ति जिसके पास उसे चाहने वाले उसे उचित मान-सम्मान देने वाले तमाम रिश्तेदारों के साथ सभी भौतिक सुख सुविधाएं देने वाली वस्तुओं के होने के बावजूद वह सुखी नहीं है, उसके चेहरे पर खुशी की चमक नहीं है।
इसके पीछे क्या कारण हो सकता है.? उसे और कुछ धन पाने की ललक, इन विषय-भोग की वस्तुओं से विरक्ति, सांसारिक बंधनों से विरक्ति या और कुछ। यह सब कुछ उसकी समझ से बिल्कुल परे है और जिसे समझने हेतु ही वह हमेशा मूक होकर अपने अंदर और बाहर उस कारण को ढूंढते रहता है जो उसे मिलता ही नहीं।
ऐसे में वह ढेर सारी सुविधाओं और अनगिनत अपनों के बीच भी खुद को हमेशा अकेला और असहाय महसूस करता है।उसके मनो-मस्तिष्क पर हरदम असंतोष छाया रहता है। वह अपने अंदर एक रिक्तता का भी अनुभव करता है और यही खालीपन उसे निरंतर बेचैन किये रहता है। वह खिन्न खिन्न सा रहता है।
काश.! वह उस कारण को ढूंढ पाता तो सुखी हो जाता पर यह उसकी भाग्य की विडंबना है जो उसे वह शक्ति प्राप्त नहीं है जो उसकी बेचैनी के कारण को ढूंढ पाता। कदाचित् वह शक्ति उसके प्रारब्ध में ही नहीं और यदि उसके प्रारब्ध में हो भी तो हो सकता है कि वह शक्ति प्राप्त करने की उसमें पुरुषार्थ ही ना हो। क्योंकि बिना पुरुषार्थ के तो संसार में मनुष्य एक सुई भी प्राप्त नहीं कर सकता।
उसे क्या मिल जाये तो वह सुखी हो सकता है। अगर यह बात वह जान जाये तो वह तत्क्षण सुखी हो जाये। मनुष्य के सारे दुखों का कारण उसका अज्ञान ही है अगर यह बात वह अच्छी तरह समझ जाये तो वह आजीवन सुखी हो जाये।