Laxmi Tyagi

Inspirational

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Laxmi Tyagi

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मुझे सम्मान चाहिए

मुझे सम्मान चाहिए

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बहुत दिनों पश्चात शिखा अपने मायके अपने भैया -भाभी से मिलने आई है , आये भी क्यों न ? खुशी का बहाना भी है। भाभी की अभी कुछ महीनों पूर्व ही , नई नौकरी लगी है। भैया- भाभी ने तो एक बार भी नहीं कहा -कि दीदी आ जाओ या मिल जाओ! हमारी खुशी में शामिल हो जाना ! सभी ने उसका खुशी से स्वागत किया। चाय पकड़ाते हुए ,सुलेखा ने पूछा -"दीदी !कितने दिनों के लिए आई हैं ? "


शिखा ने अपनी भाभी से कहा -"आई हूँ ,तो कुछ दिनों तक रहकर जाऊंगी।"


 यह सुनकर उसकी भाभी का चेहरा उतर गया ,वह नहीं चाहती थी कि उसकी ननद यहां रहे। आई हैं , तो मिलकर चली जाएं ,ख़ुशी में शामिल होने का अच्छा बहाना हो गया अपने पति से सुलेखा कहती है।


शिखा के रहने की बात सुनकर ,उसकी भाभी ने कहा -"दीदी !आप यहां कैसे रहेंगीं ? आप तो बोर हो जाएंगीं। मैं नौकरी पर चली जाऊंगी और बच्चे भी अपने स्कूल चले जाएंगे ,यह भी नौकरी पर चले जाएंगे दिनभर आप अकेली रहेंगीं।"


 शिखा ने कहा -"कोई बात नहीं मैं ,तुम लोगों की प्रतीक्षा कर लूंगी।" 


"वैसे कितने दिनों के लिए आई हैं ?" शिखा हंसते हुए बोली- "भाभी ! परेशान मत हो , बस एक सप्ताह रहकर चली जाऊंगी।"


 "नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है", सुलेखा ने कहा -मैं तो आपके मन न लगने की बात ही सोच रही थी। 


अगले दिन प्रातः काल उठते ही ,भाभी तो सुबह ही नौकरी पर चली जाती थी ,बच्चे भी स्कूल चले जाते थे दिन भर शिखा घर में अकेली रहती है , सुलेखा ने जानबूझकर शिखा को कुछ भी नहीं बताया और न ही उससे पूछा ,कि वो क्या खायेगी ? 


शिखा ने भाभी की मकान- मालकिन से पूछा- "क्या भाभी स्वयं खाना बनाती हैं ?"


तब मकान मालिक ने बताया- कि तुम्हारी भाभी खाना ही नहीं बनाती है ,बल्कि बाहर से खाना आता है।


 सुलेखा मुस्कुराई और बोली -हां, जब दिनभर काम करेंगीं तो इतनी हिम्मत नहीं होती कि खाना बना ले। शिखा मन ही मन खुश होकर ,बाजार से तरकारी -भाजी ले आई और उसने भाभी और बच्चों के आने से पहले ही खाना बना कर रख दिया। घर की साफ सफाई भी अच्छे से कर दी, उसके दिल में , यह रहता कि मेरे भाभी- भैया को मेरी वजह से कोई असुविधा न हो ,इसका प्रयास ही रहता हालांकि पैसों की कमी नहीं थी झाड़ू पोछा के लिए भाई ने पहले ही कामवाली लगाई हुई थी किंतु अन्य बहुत से कम है जो शिखा ने आकर संभाल लिए थे । 


जब बच्चे और सुलेखा घर पर आए, गरमा -गरम खाना देखकर, मुंह में पानी आ गया उसके बेटे ने कहा- बहुत दिनों के पश्चात आज घर में खाना खाएंगे। 

उसकी बात सुनकर सुलेखा को बुरा लगा और बोली -क्यों ,इससे पहले कभी घर में खाना नहीं खाया है क्रोधित होते हुए बोली।

 खाना तो खाया है किंतु बाहर से मंगवाकर बेटे ने जवाब दिया। शिखा अंदर जाकर लेट गई शिखा ने कहा सुलेखा खाना तो खा लो। 


नहीं दीदी !मुझे भूख नहीं है ,कहकर वह सोने चली गई। इस बात से शिखा को दुख पहुंचा कि मेरे कारण आज मां -बेटों में थोड़ी झड़प हो गई। शाम को भाई ने भी आकर शिखा की प्रशंसा की। 


दीदी ने घर को कितने अच्छे तरीके से चमका दिया है। 


 सारा दिन खाली जो बैठी रहती हैं ,तो घर ही चमकाएंगीं और क्या करेंगी सुलेखा ने जवाब दिया -दीदी !कुछ दिनों के लिए ही तो आईं हैं। आप आराम कीजिये ,घर जैसा चल रहा है चलने दीजिये। अपने कमरे में जाकर ,निशांत से बोली -तुम्हारी बहन बाजार जाकर सामान लाई ,क्या तुमने उन्हें पैसे दिए ?


नहीं तो...... मांगती तभी तो देता। 


कहीं उन्होंने कहीं से पैसे हटा तो नहीं लिए। 


क्या बात करती हो ?तुम ये कहना चाहती हो ,कि मेरी बहन ने चोरी की है। 


नहीं ,मैं ये तो नहीं कह रही किन्तु न ही मुझसे पैसे मांगे ,न ही तुमसे तब वे घर का सामान कैसे लाई ?ये बातें सुनकर शिखा को बहुत दुःख हुआ। एक दिन कार्य करते हुए शिखा के हाथ से कीमती सेट की प्लेट टूट गई। यह देखकर सुलेखा आपे से बाहर हो गई और बोली -खामखा आ गई है ?और मेरी गृहस्थी में दखलअंदाजी कर रही हैं। मेरी इतनी कीमती क्रोकरी तोड़ दी। पता नहीं, क्या साबित करना चाहती है ?


उसके यह शब्द शिखा के दिल को चुभ गए , शिखा आंखों में आंसू लिए बाहर आंगन में, झूले पर बैठ गई। मकान मालकिन ने देखा -कि शिखा की आंखों में आंसू भरे हैं। उसने पूछा -क्या कुछ हुआ है ? शिखा नेपहले तो अपने दर्द को झुठलाने का प्रयास किया।


 तब मकान मालकिन ने कहा -ननद और भावज में यह थोड़ी बहुत नोक- झोक तो होती ही रहती है अब यह अपने बच्चों को टाइम नहीं दे पाती है। इसे लगता है ,जैसे ननद ने आकर, उसकी जिंदगी में दखलअंदाजी कर दी।


 शिखा आँखों में नमी लिए बोली -इतना सब मैं समझती हूं। मैं तो अपने भैया-भावज की सहायता का, सोचकर ही, अपना घर समझकर ही ,यह सब कार्य कर रही थी। मैं कोई यहाँ सदा रहने के लिए आई हूँ कुछ दिन रहकर चली जाउंगी। इसीलिए ये सभी कार्य किये ,भाभी को समय नहीं मिलता ,मैं ही उनका थोड़ा घर संभाल दूँ , किंतु मुझे यह नहीं मालूम था कि इसका परिणाम बुरा होगा।भलाई के बदले बुराई मिली। अब आप ही बताइए !मैं क्या करूं ?मैं अपनी ससुराल में हूं , मेरे दो भाई हैं ,दो भाभियाँ हैं किंतु आज तक कोई सी भी भाभी, मुझे फोन नहीं करती। एक बार भी किसी ने नहीं पूछा -दीदी कैसी हो ?मैं ही फोन करके पूछ लेती हूं। वहां ससुराल में मेरे ससुराल वाले कहते हैं -'तुम्हारे मायके वाले इतने खुदगर्ज इंसान हैं ,मतलब होगा ,तो बात करेंगे वरना पूछेंगे भी नहीं। अपनी बीवी अपने बच्चे या फिर ससुराल वाले,उन्हीं मस्त रहेंगे और सभी रिश्तों को तो ताक पर रख दिया। तुम तो उनकी सगी बहन हो ,किन्तु व्यवहार ऐसे करते हैं ,जैसे जानते नहीं। कुछ दिनों के लिए भी तुम्हें बुलाते नही। 


मैंने हंसकर कहा भी था -कहते हुए ,शिखा की हिड़की बंध गयी। लड़कियां तो पराया धन ही होती हैं। 


किंतु उन्होंने जवाब दिया -बेटियां पराई होती हैं किन्तु उनका त्याग नहीं होता ,अपने परिवार से अपनी बहन भाई से अपने लोगों से मिलने भी जाती हैं। 


इसी अपमान के कारण मैं यहां नहीं आती किंतु मैंने सोचा -भाभी की नौकरी लगी है, क्यों न उस खुशी को बांट लिया जाए इस बहाने से मेरी ससुराल वालों का भी मुंह बंद हो जाएगा कि मैं मायके में एक सप्ताह रहकर आई हूं। क्या मैं, इन लोगों के व्यवहार को नहीं समझती हूं ? इनका मन भी तो करता होगा कि मैं भी अपने मायके जाऊं अपने परिवार वालों से मिलूं ,कुछ अपना दुख -दर्द बांट लूँ किंतु यह लोग इतने मतलबी हैं ,इन्हें लगता है ,उनके पैसे पर ही दुनिया मरती है। जो रिश्ते हैं ,वह पैसों से ही जुड़े हैं। यह लोग एक बेटी का दर्द क्या समझेंगे ?,एक बेटी खुश होकर अपने घर आना चाहती है मिलना चाहती है किंतु जो नई बहु ,भाभी के रूप में आती हैं ,वही उस बेटी का दर्द नहीं समझ पाती जबकि वह स्वयं एक बेटी होती हैं अपने मायके वालों को तो सभी को बुला लेंगे किंतु ननद सास और ससुर ये सभी रिश्ते पराये हो जाते हैं। उनका बेटा तो चाहिए किंतु उसके पीछे जो परिवार है ,उस परिवार से कोई मतलब नहीं होना चाहिए।


 मेरी अपनी ससुराल में ,मैं दो नंदन की भाभी हूं किंतु जितना अपमान मुझे यहां सहन करना पड़ता है मेरा दर्द कोई नहीं समझ पाएगा। आप क्या समझतीं हैं ?मेरे पास पैसे नहीं है ,पैसों की कमी है या पैसों के लिए मैं इन लोगों के पास आती हूं ,मुझे वह अपनापन, प्यार उसकी तलाश है, जो कि मुझे यहां नहीं मिलता। मेरे भाई भी ऐसे हैं, कभी भाभियों के बिना, मुंह से दो बोल मीठे भी नहीं बोल सकते। 


शिखा एक हफ्ते के लिए रहने आई थी किंतु चार दिनों के पश्चात ही वह चली गई, उसके चेहरे पर उदासी थी। भाभी ने उसे एक साड़ी, एक सूट कुछ सामान देने का प्रयास किया किंतु शिखा उस सामान को और उसके दिए पैसों को बच्चों पर न्योछावर करके, वहीं छोड़कर चली गई। मुझे पैसे नहीं मुझे रिश्ते चाहिए कह कर वहां से चली गई। जो इस घर की बेटी का होना चाहिए ,वो सम्मान चाहिए। 


न जाने कितनी बेटियां ऐसी हैं ?जो उदास चेहरा लिए अपने मायके से आ जाती है ,कभी-कभी उनकी हिम्मत भी नहीं होती कि वह मायके में जाएं क्योंकि उन्हें वह सम्मान- प्यार वह अपनापन नहीं मिलेगा। खूब इच्छा होती है कि वह अपने मायके जाएं किंतु उन लोगों के व्यवहार को सोचकर ,अपना मन मसोसकर रह जाती हैं । जिन लड़कियों को अपने मायके में, वह प्यार और अपनापन मिलता है। वह भाग्यशाली हैं, किंतु इस कहानी को लिखने का मेरा उद्देश्य यही था कि भाभी भी तो किसी घर की बेटी होती हैं तो फिर वह उस घर की बेटी का मान क्यों करती है ?उन्हें वह सम्मान क्यों नहीं देती है ?कभी अपने पर सोच कर देखा है। कभी सास के रूप में ,कभी बहू के रूप में और कभी ननद के रूप में एक औरत ही औरत का अपमान करती आई है। 



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