Vinita Shukla

Others

4.0  

Vinita Shukla

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रिश्तों के समीकरण

रिश्तों के समीकरण

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"अन्नी बुआ नहीं आईं?" शव को दाह के लिए ले जाने से पहले, हर कोई, समीर से पूछ रहा था। सुनकर, झुंझलाहट होने लगी। पूछने वाले, उसे झुँझलाते हुए पाकर भी, दोबारा कुरेदने से, नहीं चूके, "उन्हें सूचना तो दी थी?" 

  क्रोध का घूंट पीकर किसी भांति, वह खुद को सम्भाले था। अन्नी बुआ, उसके पिता की प्रिय बहन रहीं। अन्नी उर्फ अनुजा का, कोई सगा भाई नहीं था। समीर के पिता, देवराज ने ही, उनके विवाह में, भाई की सभी रस्में निभाई थीं।  

 और आज....! एक ही शहर में रहने के बावजूद, वे अपने उस भाई....प्यारे देबू भैया के, अंतिम दर्शन करने नहीं आईं। विधवा भाभी की खोज- खबर तक नहीं ली! 

 यूँ तो पहले से ही वे, उन लोगों से कटने लगी थीं। उनका सामाजिक कद जो बढ़ गया था। जब देवराज ने, आर्थिक समस्या के चलते, उनके शोरूम में, समीर की नौकरी, लगवानी चाही, वह सफाई से टाल गईं।

 समीर तो ठीक से अंग्रेजी तक बोल नहीं पाता। शोरूम में, उसे रखने का, सवाल ही न था। देबू के शोक में, शामिल होने से; अन्नी पर, समीर को रोज़गार देने का, सामाजिक दबाव बन सकता था!

 समय ने करवट ली। अनुजा बुरी तरह बीमार पड़ी थीं। तब एक देवता स्वरूप डॉक्टर ने, उनकी जान बचाई। व्यक्तिगत तौर पर, उसे धन्यवाद देने, अन्नी, उसके घर पहुंच गयीं। 

वहाँ किसी को देखकर, वे बेतरह चौंक पड़ी थीं। यह तो समीर था! उन्होंने हकलाते हुए प्रश्न किया था, "डॉक्टर विभोर?"

"वह बाहर गया है "रुखाई भरा उत्तर था। 

 "आप?"

 "मैं विभोर का पिता" समीर ने बेरुखी से कहा। 

  "मुझे पहचाना?" अगला सवाल था। 

"आप जैसी मेरी एक बुआ थीं, लेकिन दुनियादारी के फ़ेर में....वे कहीं खो गईं।"

 अन्नी चुपचाप बाहर चली आईं। भीगी आँखें जता रही थीं कि रिश्तों के समीकरण, बदल गए थे!! 

  



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