समझौता
समझौता
आज हमारे रेस्टोरेंट कपूर्स फूड कोर्ट के काउंटर पर एक नया चेहरा था, कल तक इस काउंटर पर हमारे पुराने मैनेजर रमेश कुमार हुआ करते थे। आज भी जब इस काउंटर पर नजर पड़ती है तो मैं अपने पुराने खयालों में खो जाता हूं।
दोपहर का समय था करीब दिन के दो बज रहे थे। हमारे आधे से ज्यादा वर्कर अपना काम निपटा कर भोजन हेतु ऊपर के डायनिंग रूम में जा चुके थे। इतने में एक सज्जन, जिनकी उम्र करीब चौंसठ पैंसठ के करीब होगी, होटल के काउंटर पर पहुंचे और कुछ सोचते हुए पूछा
"खाने में क्या मिलेगा"
"वेज या नॉन वेज"
"सादा"
"वेज में दाल चावल रोटी सब्जी मिलेगा और नॉन वेज में चिकन बिरयानी, मटन बिरयानी, एग बिरयानी सब कुछ है", मैंने कहा।
वो बोले, ठीक है एक सादा भोजन पार्सल करवा दीजिए।
मैंने आवाज लगाई, "बलजीते", फिर याद आया कि वो भी खाना खाने गया है
मैंने कहा, सर आप बैठिए बस दस मिनट में आपका आर्डर पार्सल कराता हूं।
वो सामने के चेयर पर बैठ गए। कुछ समय बाद वो उठ कर फिर काउंटर पर आए और कहने लगे
"मैं यहीं पास में रहता हूं और मैं एक रिटायर्ड कर्मचारी हूं और टाइम पास के लिए अगर कोई नौकरी मिल जाए तो कर लूंगा, अगर आपके यहां कोई जगह हो तो कृपया मेरे प्रस्ताव पर विचार करें"
"आपका किस तरह का काम कर सकते हैं ?"
"मैं काउंटर सम्हाल सकता हूं" उन्होंने कहा
"आपका क्वालिफिकेशन"
"बी काम, एम. ए."
"ठीक है, पर आपको ज्यादा सैलरी नहीं दे पाऊंगा, मात्र पंद्रह हजार तक दे सकता हूं"
"ठीक है सर मुझे मंजूर है बताइए कब से आना होगा?"
"आपका नाम"
"रमेश कुमार"
"तो ठीक है रमेश जी आपको आठ घंटे ये काउंटर सम्हालना होगा। हमारे पास पहले से दो मैनेजर हैं,
आपने पहले कभी किसी रेस्टोरेंट में काम किया है?"
"हां, मैंने शॉपिंग मॉल में काम किया हुआ है"
"तो ठीक है, पहले आप काम को समझ लीजिए, हमारे रेस्टोरेंट के मेनू को समझ लीजिए फिर पन्द्रह बीस दिन बाद जब आप सब कुछ समझ लेंगे तो फिर काउंटर पर बैठना चालू कर दीजिए"
जी ठीक है, रमेश कुमार ने कहा।
इस तरह रमेश जी का ट्रैनिंग पूरा हुआ और वो अच्छे से काउंटर सम्हालने लगे। मैंने पाया की इस उम्र में भी वो फुर्ती के साथ अपना काम करने लगे। जब भी जरूरत पड़ता आठ घंटे ड्यूटी के बाद भी काउंटर पर काम करते थे। कभी कभी रिलीवर के नहीं आने पर दो शिफ्ट ड्यूटी भी करने को तत्पर रहते थे।
एक दिन की बात है मैं जब रेस्तरां पहुंचा तो काउंटर पर कोई नहीं था और जब अंदर गया तो किचन में रमेश जी को देखा जो हमारे चीफ शेफ बलजीत से बात कर रहे थे, मैंने पूछा क्या हुआ?
वो बोले, आज एक नई जगह से चिकन लाया हूं इसलिए चिकन की क्वालिटी आदि के बारे में इनसे पूछ रहा था।
"नई जगह से क्यूं? क्या चिकन दुकान बदलते रहते हैं?"
"जी सर"
"क्यों"
"सर, वो पुराना वाला ठीक क्वालिटी का चिकन नहीं दे रहा था और उसका रेट भी ज्यादा है"
"कितना?"
"250 रुपए किलो"
"यही रेट तो चल रहा है"
"सही बात है सर, पर हम एक साथ 40-50 किलो चिकन लेते हैं तो कुछ तो कम रेट मिलना चाहिए। हमारे पास बहुत से विकल्प हैं, हम रोज के ग्राहक हैं और हमारे पास चिकन हेतु कई दुकानें हैं"
"रमेश जी, फिर क्यों न किसी चिकन शॉप से रेट कॉन्ट्रैक्ट कर लें"
"यहां कोई चिकन वाला इसके लिए तैयार नहीं है सर"
"ठीक है जैसा आप ठीक समझो, कर लीजिए"
"आपने खाना खाया?"
"जी नहीं, सेकंड शिफ्ट मैनेजर का इंतजार कर रहा हूं"
"ठीक है रमेश जी, उनके आने तक मैं काउंटर सम्हालता हूं आप खाना खा लीजिए, दिन के करीब तीन बज रहे हैं"
फिर रमेश जी ऊपर डायनिंग रूम की ओर बढ़ गए और जाते जाते वेटर को आवाज देकर खाना ऊपर भेजने को कह गए।
मैं रमेशजी के जाने के बाद सोचने लगा कि ये बन्दा एक रिटायर्ड आदमी है और इनकी उम्र भी आराम करने की है पर कुछ व्यक्तिगत मज़बूरी में यहां काम कर रहे हैं, अगर ये चाहते तो सीधे बाजार जाकर किसी भी दुकान से चिकन खरीद सकते थे पर उस चिकन खरीदने हेतु एक घंटा बाजार में घूम घूम कर मोल भाव करना, यही दर्शाता है कि ये बन्दा अपने काम के प्रति कितना समर्पित है और ईमानदारी से सब कुछ साफ़ साफ़ बता भी दिया। ये सब देख, मेरा उनके प्रति आदर और बढ़ गया।
करीब पंद्रह मिनट बाद एक वेटर थाली में कुछ ले कर ऊपर डायनिंग रूम की ओर जाने लगा
"राजू, किसका खाना है?"
"रमेश सर का"
मैंने काउंटर से उठकर वेटर के करीब पहुंचा और थाली में देखा तो उसमें दो चपाती, थोड़ा सा सादा चावल, एक कटोरी दाल, एक कटोरी दही, आलू पालक सब्जी और थोड़ा सा सलाद।
मुझे आश्चर्य हुआ कि हमारे रेस्टोरेंट के किचन में इतना सब कुछ है फिर सिर्फ सादा भोजन क्यों?
मैंने अपने चीफ शेफ को बुलाया
"बलजीत, इतना सब कुछ किचन में है और रमेश जी को ये खाना भेज रहे हो, क्या रमेश जी नॉन वेज नहीं लेते, मैंने वेटर के हाथ की ओर इशारा किया, जो रमेश जी का भोजन थाली लेे कर अभी भी वहीं पर खड़ा था।
"सर, रमेश जी का खाना बहुत सीमित, सादा व संतुलित होता है, हफ़्ते में एक ही दिन नॉन वेज खाते हैं, वही, दो चपाती, थोड़ा सा सादा चावल, दाल, दही वगैरह और रात में सिर्फ दो चपाती दूध के साथ बस, दुनिया इधर से उधर हो जाए, इनका शेड्यूल चेंज नहीं होता"
"अभी इनकी मैडम बाहर गई हुई हैं, उनके साथ में रहने पर, कितना भी देर हो जाए घर पर ही खाना खाते हैं और कितनी भी जबरदस्ती कर लो, रेस्टोरेंट से कुछ ले कर नहीं जाते"
"ठीक है, राजू जा दे अा रमेश जी को थाली"
राजू थाली ले कर ऊपर चला गया।
मुझ से रहा नहीं गया, और मैं भी कुछ समय पश्चात् ऊपर डायनिंग रूम की ओर बढ़ गया।
"ये क्या रमेश जी, इतना सब कुछ है अपने यहां और आप हो कि बिलकुल सादा भोजन ले रहे हो?" डायनिंग रूम में प्रवेश करते ही मैंने रमेश जी से सवाल किया
मुझे देख रमेश जी उठने लगे तो मैंने कहा
"अरे नहीं उठने की जरूरत नहीं, पहले अपना भोजन समाप्त कर लीजिए"
रमेश जी अपने स्थान पर वापस बैठकर भोजन करने लगे।
फिर भोजन समाप्ति के बाद हम दोनों कुछ समय वहीं बैठ कर गपशप करने लगे।
"रमेश जी आपने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया"
"सर, मैं चटपटा भोजन कर अपनी आदत खराब नहीं करना चाहता"
"वो कैसे"
"सर पहली बात ये है कि मेरी उम्र पैंसठ के करीब है और मुझे इस तरह के भोजन से पाचन में परेशानी होती है,
दूसरी बात, रिटायरमेंट के बाद से ही हम लोग आर्थिक परेशानियों से गुजर रहे हैं और उसी के चलते मुझे इस उम्र में नौकरी करनी पड़ी है, और रिटायरमेंट के बाद इन पांच सालों से ऐसे ही भोजन की आदत पड़ चुकी है और अगर आज इसे बदलने की कोशिश करता हूं तो ये न तो मेरे स्वास्थ्य के लिए और न ही मेरे पॉकेट के लिए ठीक है"
"रमेश जी वो तो ठीक है पर अभी आपके पास अच्छे भोजन का विकल्प है न"
"कब तक रहेगा सर, मैं ज्यादा से ज्यादा तीन चार साल और नौकरी कर सकता हूं और उसके बाद फिर वही जिंदगी, जहां सिर्फ सादा भोजन ही हमारे बस में होता है और इसे पाने के लिए भी हमें कई ख्वाहिशों को दफन करना पड़ता है"
"सर बचपन से एक बात सुनने में आती थी कि इंसान जीने के लिए खाता है या खाने के लिए जीता है, उस वक़्त इस सवाल का कोई उत्तर समझ नहीं आता था पर आज इस सवाल का स्पष्ट जवाब मेरे सामने है, और शायद हमारे जैसे लोग जीने के लिए ही खाते हैं"
"..............."
मेरे पास कोई उत्तर नहीं था, बस एकटक रमेश जी की तरफ देखता रह गया।