संस्कारी बहू
संस्कारी बहू
अपनी बचपन की सहेली के ,लड़के की शादी के बाद जब पहली बार उसके घर गई।तब नई बहू मुझे मौसीजी कहकर बड़ी ही आत्मीयता से मुझसे मिली।उसका संबोधन मेरे कानों को बेहद सुखद लगा।फिर कुछ देर बाद ,मैं अपनी सहेली के साथ बातों में मशगूल हो गई।और नई बहू रचना ,मेरे मना करने के बावजूद भी सामने ही किचन में हमारे लिए नाश्ता तैयार करने में जुट गई।कुछ देर इधर उधर की बाते करने के बाद अनायास ही सरला ।बहु के मायके से मिले कम दहेज ,के बारे में एक एक सामान कीमत के साथ मुझे बताने लगी।यह सब नई बहू के सामने सुनना मुझे ठीक नही लग रहा था।मैंने जब उसे इसके लिये टोका तो झल्लाकर बोली कि,हम कोई दहेज लोभी नही है।पर कम से कम हर माँ बाप को अपनी बेटी को इतना सामान तो देना ही चाहिए।जिससे सबके सामने ससुराल वालो की नाक न कटे।
इतने में ही रचना जो सामने के कमरे से अब तक हमारी बातें सुन रही थी।चाय नाश्ते की प्लेट ले हमारे सामने आ गई।और मुस्कुराकर बोली ,मौसीजी बातें तो होती ही रहेंगी।आप पहले नाश्ता कीजिये।दीखिये सब ठंडा हो रहा है।पर सरला नाश्ता करते हुए उसके सामने भी वही सब कहे जा रही थी।जिसे वो बेचारी भी सर झुकाए सुन रही थी।फिर रचना के वहाँ से जाते ही मैंने सरला को समझाते हुए बोला "कि हो सकता है,तूझे बहु के मायके वालों ने सामान कम दिया हो।पर उन्होंने रचना को संस्कार देने में कोई कमी नही की।वरना आज के दौर में अपने माता पिता व मायके का इतना उल्हना भला कौन बहु बर्दास्त करती है।" सहेली की बात ने,सरला को अपनी का आकलन दोबारा करने पर मजबूर कर दिया।