अनजान रसिक

Action Classics Inspirational

4  

अनजान रसिक

Action Classics Inspirational

सर्व- सम्मान है आवश्यक

सर्व- सम्मान है आवश्यक

3 mins
271


रोहित एक बहुत ही निम्न परिवेश में जन्मा व साधारण सी परिस्थितियों में पला बड़ा था. उसके पिताजी सिद्धेश जी रेलवे में टिकट कलेक्टर के पद पर कार्यरत थे और माताजी विमला जी ग्रहणी थीं. रोहित के 3 छोटे भाई बहन थे. मामूली सी तनख्वाह होने के कारण सिद्धेश जी बच्चों व परिवार की आवश्यकताओं को ही किसी तरह पूरा कर पाते थे. महीने की 20 तारीख तक का खर्चा उनकी आय से चलता था और बाकी 10 दिन विमला जी के जुड़े हुए पैसों से जैसे तैसे चलता था.ऐसी विषम परिस्थितियों को झेलते झेलते रोहित समय से पहले ही परिपक्व हो गया था।

जहां कॉलेज के सब लड़के छुट्टी में घूमने फिरने और मौज मस्ती करने जाते, रोहित घर पर रहकर रोज़मर्रा के कार्यों में माँ की मदद करता व भाई बहनों को पढ़ाता. उसकी यह प्रबल धारणा थी कि सृष्टि से जो लिया है, वह उसे लौटा कर अपना कर्तव्य हर मानव को अवश्य निभाना चाहिए. इसलिए जहां एक ओर उसके सभी दोस्त महंगी गाड़ियों में कॉलेज आते थे, वहीं वह सदा सायकिल से कॉलेज जाता था - इससे दो फायदे होते, पहला धन की बचत दूसरा वातावरण की रक्षा और इस तरह उसके आदर्शोँ का अनुसरण भी हो जाता परन्तु इतनी सारी खूबियों के बावजूद एक स्पष्ट वक्ता होने के कारण वह अधिकांश व्यक्तियों की नज़रों को ना भाता था. लोग हर वक़्त उससे पीछा छुड़ाने का यथासंभव प्रयास करते व संवाद करने से बचते.आखिर सही को सही व गलत को गलत सुनने का जिगर सब में नहीं होता. बस इसी कारण से वह हर किसी की दुश्मन बन जाता।

सिद्धेश जी बहुत बार रोहित को प्यार से समझाते कि " जैसा देश वैसा भेष ". वह सदा नसीहत देते कि इस प्रकार का आचरण ठीक नहीं है और यह अंततः रोहित को हर किसी का शत्रु बना देगा.अगर किसी की बात पसंद नहीं आती तो चुप हो जाना एक बेहतर विकल्प है परन्तु आदत से मजबूर रोहित के कान पर झूँ तक ना रेंगती. उसके सर पर सच का साथ देने का भूत सवार रहता और वह हर नसीहत को एक सिरे से दरकिनार कर देता. देखते ही देखते उसका हर दोस्त दुश्मन बन गया और वह अकेला, बहुत अकेला पड़ गया. वह जिससे भी बात करने की कोशिश करता वह उसे टाल देता और अपना रास्ता बदल लेता. अब उसे लोगों व दोस्तों की कमी महसूस होने लगी पर वो कहावत है ना " अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयीं खेत." समय बीत जाने के पश्चात हाथ मलते रह जाने का कोई फायदा नहीं होता।

अब कोई भी रोहित से सीधे मुँह बात तक ना करता था. सिद्धांतों का पक्का होना अच्छी बात है परन्तु अपनी सोच को किसी और पर थोपना ठीक बात नहीं है. विचारों का प्रतिद्वंद तो हर किसी के बीच में होता है और यह सिलसिला जीवन पर्यंत चलता रहता है परन्तु यह ज़रूरी नहीं कि जो हमें गलत लगता है, वो सच में ही गलत हो. नज़र और नज़रिये का फर्क ही किसी कार्य को सही या गलत बनाता है. मसलन विमान में बैठा पायलट ज़मीन देख कर घर को याद करता है और वहीं ज़मीन पर खड़ा व्यक्ति उस विमान को ऊपर उड़ता देख उस में बैठने के सपने संजोता है. अपनी सोच के हिसाब से कार्य करते हुए दूसरों की सोच को भी सम्मान देना चाहिए क्योंकि यह सोच की भिन्नता ही तो नये अविष्कारों को जन्म देकर दुनिया को रंगों से भर देती है . रोहित की हठ ने उसे सर्वगुण-संपन्न होते हुए भी सबका अप्रिय बना दिया व उसके जीवन को अकेलेपन से भर दिया था।

अच्छाईयों का भण्डार भी तभी असरदार होता है जब व्यक्ति विशेष को जीवन के मूल सिद्धांतों का भली भांति बोध हो अन्यथा हर गुण हर अच्छाई व्यर्थ है।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Action