तस्वीर

तस्वीर

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कमरे में टँगी तस्वीरों से भी कमरे में रहने वाले ब्यक्ति की रुचियों का पता चलता है।भिन्न भिन्न कमरों में भिन्न भिन्न किस्म की तस्वीरें दिखती हैं।कुछ लोग तो दिखाने के लिये भी तस्वीरें लटकाते हैं।


आजकल तो आप को गले मे भी तस्वीरें लटकाये हुये लोग मिल जायेंगे।लाकेट में एक छोटी सी तस्वीर झूलती हुई मिल जायेगी।लाकेट की तस्वीरों में भी भिन्नता है।फैशन के इस दौर में तस्वीरों की अपनी अपनी रुचियां हैं।कभी आप के सामने इस तरह की समस्या आ सकती है कि आप के कमरे में टँगी तस्वीर आप के सामने बड़ा संकट पैदा कर सकती है।जैसे आपने अपने कमरे में अपने लिये नहीं किसी और के लिये तस्वीर लगायी है।

आप की मुश्किलें इतनी बढ़ सकती हैं कि अगर आपने अपने कमरे से वो तस्वीर नही हटायी तो आप का देशाटन तक बन्द हो सकता है।आप की पत्रिका का बिकना बन्द हो सकता है।आप के प्रवचनों पर पाबंदी लग सकती है।यानी आप का जीना दूभर हो सकता है।आप की स्वतंत्रता छीनी जा सकती है।आप के कमरे में टँगी तस्वीर से आप के जमाने से रिश्ते बदल सकते हैं।जमाने की आंख आप के कमरे पर है और उसमें टँगी हुई तस्वीर पर भी है ।


लेकिन आप बड़े खुशकिस्मत हैं क्योंकि जिस तस्वीर से आप के सामने समस्याएं उठ खड़ी होने वाली हैं वो तस्वीर तो अभी बनी ही नही है।वो तस्वीर अभी अधूरी है।हाँ बड़ी लगन से उस तस्वीर को बनाने की कोशिश हो रही है।अब बनाने वाला भी अनिश्चितता का शिकार है।बाल बनाये काले और तस्वीर बनने से पहले हो गये सफेद।दिखाया गया हल जोतता हुआ पर जमीन गायब।बनाये हंसता हुआ तो उसके रोने से ही तस्वीर गीली हो गयी।रंग विखरने लगा।काला सफेद में मिल गया तो हरा अग्निवत हो गया।

तो तस्वीर अभी बन नही पायी है जिसे आप के कमरे में लटकाने से आप की दुश्वारियां बढ़ जाएं।या आप के आनन्द में खलल पड़े।लेकिन बनाने वाले तस्वीर बनाने में लगे हुए हैं।सूचना के रंग से कल्पना में,अटकलों की कलम से तस्वीर बनाने में लगे हुए हैं।सूचना आती है वह हंस रहा है,कल्पना कहती है, वह रो रहा है।अटकलें लगाई जाती हैं वो सोया हुआ है।बस तस्वीर बनना शुरू क़ि अभी थोड़ी सी बनी की सूचना आती है वह रो रहा है।कल्पना कहती है ये तो हंसने का समय है।अटकलें लगाई जा रही है कि वह भाग रहा है।फिर पहले बनी तस्वीर रद्दी की टोकरी में,दूसरी शुरू।अभी पूरी नहीं हुई तबतक सूचना आयी,अरे वो तो गा रहा है।गुमसुम गुमसुम सा गा रहा है।कल्पना कहती है वह दिखावटी गाना गा रहा है।

अटकलें लगाई जा रही हैं कि ये तो प्रवचन का विषय है।तो फिर एक कोशिश शुरु हो जाती है तस्वीर बनाने की।ये जो चित्रकार है न तस्बीर बनाने वाला उसे तो गायक होना चाहिये था।अगर गायक होता तो एक सफल गायक होता और उसे भारतीय शास्त्रीय संगीत में महारथ हासिल हो जाती।जहाँ एक ही पंक्ति सुबह से शाम तक गायी जा सकती है।फिर भी उस पंक्ति के ख़याल खत्म नहीं होते।एक ही पंक्ति समय की घड़ी की तरह टिक टिक टिक टिक सितार की धुन में मिलकर एक अदभुत गीत की रचना कर डालते हैं।लेकिन चित्रकार गायक न होकर कलाकार बन गया है।

उसे तस्वीर बनाने की एक सुंदर सी नौकरी मिल गयी है।तो तस्वीर बनाना उसकी नौकरी है और वह अपनी ड्यूटी कर रहा है।तस्वीर बना रहा है तस्वीर मिटा रहा है।फिर दूसरी बना रहा है लेकिन अभी तक उस स्थिति की कल्पना तक नहीं कर पाया है कि तस्वीर कैसी होनी चाहिये।उसको आदेश है कि तस्वीर बिल्कुल यथार्थ होनी चाहिये।पल पल रूप बदलने की आदतें बदलें तो एक स्थायी रूप दिखे तब उसकी चित्रकारी आसान हो सकती है।लेकिन तस्बीर कमरे में होनी चाहिये औऱ उसके लटकाने से समस्या उठ खड़ी हो सकती है तो तस्वीर कमरे में लटकाने का शौक छोड़ देना कोई मुश्किल काम नहीं होना चाहिए।

लेकिन मैंने भी अपने कमरे में एक तस्वीर टांग रखी है।अगर आप इस कमरे में आ जाएं तो दो दिन में कमरा छोड़कर भाग जायेंगे।आप को हमारा कमरा भूतों का डेरा लगने लगेगा।ऊपर से कमरे में लटकती हुयी तस्वीर एक ख़ौफ़ से कम नही है।अब यह कभी रोती है तो कभी मुस्कराती है।जब मैं कमरे में आता हूँ तो मुस्कराने लगती है जब मैं कमरे से बाहर निकलता हूँ तो रोने लगती है।रोना भी ऐसा कि जहाँ तक जाता हूँ उसके रोने की आवाज कान में पड़ती रहती है।इतना ही नही अपना कैनवास भी बदलती रहती है।कभी अपने को कटिंली झाड़ियों के बीच कर लेती है तो कभी हाथ मे तलवार लेकर हवा में लहराती है।कभी कमरे को मरघट की दुर्गंध से भर देती है तो कभी लगता है कमरे में खुशबू ही खुश्बू है।कभी पानी मे डूबती हुयी नजर आती है तो कभी जलती हुयी आग पर खड़ी होकर मुझे अपने पास बुलाती है।आप मेरी स्थिति का अंदाज लगा सकते हैं।

सम्भव है आप का उस तस्बीर से पाला पड़ा हो जिसके कमरे में टांगने से आप के सामने अभूतपूर्व समस्या पैदा होने की संभावना हो,लेकिन जो तस्वीर मेरे कमरे में टँगी है वो अगर आप को अपने कमरे में लगानी पड़े तो आप का क्या होगा यह बिल्कुल वैसा ही होगा जैसे कि कमरे में तस्वीर लगाने से हो सकता है।लेकिन अगर लोगों ने इस तस्बीर की विशेषता सुन रखी है कि भई चुपचाप दीवाल से टँगी रह ही नही सकती ये।यह बोलती भी है,हंसती भी है,गाती भी है,क्रोध को छोड़कर यह वह हर अच्छा बुरा काम कर सकती है जो अच्छा बुरा आदमी कर सकता है।अच्छा से अच्छा और बुरा से बुरा काम।फिर भी अगर आप ने इसे अपने कमरे में लगा लिया तो कोई भी आदमी आप से मिलने के लिये आप के कमरे में जाने की हिम्मत नही कर सकता ।

एक आप का अच्छा सा कमरा डर का अड्डा बन सकता है।बस आप के कमरे में टँगी तस्वीर की याद आते ही लोग आप के कमरे में जाकर आप से मिलने का इरादा ही छोड़ देंगें।उनके दिमाग मे यह बात पहले से ही भरी हुई है कि वह बुरे बुरे काम करती है।लोग यह सोच भी नही पाते कि भई तस्वीर अच्छा से अच्छा काम भी कर सकती है।

मैं आप को बताऊं मैने भी सोचा था कि इस तस्वीर से छुटकारा पा लूं।सो मैंने एक दिन सीढ़ी लगाकर दीवाल से उतार कर अपने घर के सामने वाले कुएं में फेंकने की सोची। अभी मेरा हाथ तस्वीर के फ्रेम तक पहुंचा ही था कि सीढ़ी सरककर फर्श पर आ गिरी साथ साथ मैं भी फर्श पर गिर पड़ा।तब जले पर नमक छिड़का तस्वीर ने औऱ खिलखिलाकर हंसने लगी।बोली मैं तुम्हारे कमरे से नहीं जाऊंगी।

अगर मुझे अपने कमरे से हटाना ही चाहते हो तो दीवाल ही गिरानी पड़ेगी।मैं तो सुपरगम से तुम्हारी दीवाल से चिपकी हुयी हूँ।तस्वीर को उतारकर कुँए में फेंकना एक अब एक मुश्किल काम है और कमरा छोड़ पाना मेरे बस का नही है दूसरा मिलेगा भी या नही।मिलेगा भी तो जाने कैसा।यह जो है वह तो बहुत सुंदर है बस तस्वीर की समस्या है।

एक दिन मैं तस्वीर को ध्यान से देखने लगा तो तस्वीर बोलने लगी।भई तुम मनुष्य हो,अपने विखरे सामान समेटो।अब सामान इतने विखरे हुये हैं कि उनको इकट्ठा करना मुश्किल काम है।लेकिन मैं अपने विखरे सामानो को इकट्ठा करने की कोशिश कर रहा हूँ एक दूसरे दिन मैंने तस्वीर को ध्यान से फिर देखना शुरू किया बोली दो चार दोस्त बनाओ अच्छा रहेगा।अब मैं दोस्त बनाने के लिए चक्कर पर चक्कर चला रहा हूँ पर दोस्त मिलना भी आसान काम नही लग रहा है।फिर भी कोशिश कर रहा हूँ दोस्त बनाने की।

एक दिन मैंने तस्बीर से कहा भई जब आप रोती हैं तो मुझे बड़ा दुख होता है कृपा करके यह काम मत किया कीजिये।

तस्वीर ने कहा इसके लिए एक शर्त है ओर वह यह है कि तुम्हें भी रोना बन्द करना पड़ेगा।

मैंने कहा भई मैं मनुष्य हूँ न रोने का वायदा कैसे कर सकता हूँ।संसार मे जब कही जाओ तो सहानिभूति में रोने वाले के साथ रोना पड़ता है।अगर सचमुच की रुलाई न आये तो भी रोने का अभिनय करना पड़ता है तस्वीर मेरी बात मान गयी बोली चलो आज से मेरा रोना धोना बन्द समझो।

मैंने कहा भई इतने से काम नही चलने वाला है तुम तस्बीर हो तो तसवीर की तरह रहो शांति पूर्वक दीवाल पर लटकती रहो।अपना एक पोज तय कर लो औऱ हमेशा उसी पोज में कमरे की शोभा बढ़ाती रहो।

बोली यह काम मुझसे नही होगा औऱ तुम मुझे अपने कमरे से बाहर नही निकाल सकते। तुमने एक बार मुझे उतारकर कुएं में फेकने की कोशिश में अपना हाथ पांव तुड़वाते तुड़वाते बचे हो। मैं कुएं में रहने वाली नही हूँ।जितने कुएं हैं न उनका पानी सूख चुका है और जो अच्छे हैं जिनका पानी पीने लायक है उनको पाटकर लोगों ने उसके ऊपर प्लास्टर लगा दिया है।मन्दिर बनवा दिया है मस्जिद बनवा डाली है अपने लिए घर बना डाला है।मैं तुम्हारे इसी ख़ूबसूरत से कमरे में पड़ी रहूंगी।रोने और गुस्सा होने के अलावा हर काम करूंगी।

एक दिन एक साहित्यकार मेरे घर आये।उनका उस तसवीर से छत्तीस का रिश्ता है।यह रिश्ता भी मानसिक है और परम्परागत है।खाना खाकर सोये।रात भर तस्वीर ने उन्हें सोने नही दिया।जैसे चद्दर में मुंह ढककर सोने की कोशिश करते तस्वीर उनका चद्दर खींच देती।एक दो बार तो उन्होंने सामान्य सा लिया,लेकिन जब उन्हें लगने लगा कि इस कमरे में मेरे साथ कुछ असामान्य सा घट रहा है तो डरने लगे और तब तस्वीर खिलखिलाकर हँसने लगी।फिर भी सच को छिपाते हुये उन्होंने मुझे आवाज लगायी, बोले एक गिलास पानी पिलाइये औऱ यहीं मेरे पास सोइये ताकी कुछ साहित्यिक चर्चा हो।।जब चर्चा शुरु हुई तो तस्वीर ने कमरे में गन्ध का एक झोंका फेंका, कमरा खुशबू से भर उठा।

बोले आप इसके शौकीन हैं। बहुत बढ़िया इत्र है लगता है विदेशी है।

मैंने कहा मैं इत्र का नही तस्वीर का शौकीन हूँ और यह इत्र जिसकी गन्ध आप को विदेशी लग रही है वह तस्वीर के साथ रहती है।

बोले साहित्यकार बनना चाहते है तो इस तरह की दकियानूस विचार वाली तस्वीरों को अपने कमरे में न लगाया करें।इससे आप पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

मैंने कहा मैं तो सिर्फ अपने अनुभव व्यक्त कर रहा हूँ औऱ उस तस्वीर के मेरे अनुभव बड़े रहस्यमय रोमांचकारी औऱ ज्ञानवर्धक हैं।। बोले आप सहित्यकारों के एक प्रभावशाली गुट से कट जायेंगे

मैंने कहा बाजार का मतलब तो थोड़ा थोड़ा मैं भी समझता हूँ लेकिन मनुष्य की दिलचस्पी साहित्य में अधिक होनी चाहिये या साहित्यकार में ,मैं अभी निर्णय नही कर पाया हूँ।साहित्य तो आजकल समाचार का विषय बनता जा रहा है।

खैर कमरे में तस्वीर टँगी है और वह आदमी की तरह अपना रूप बदलती है उससे जुड़ी कहानियां आगे भी चलती रहेंगी।फिर भी दयापूर्वक मेरी स्थिति के बारे में सोचिये।आप उस तसवीर को अपने कमरे में न लगाकर उन समस्याओ से बच सकते हैं जिसके लगाने के बाद आप के समक्ष जिनका पैदा होना संभव है लेकिन ये तो मेरे कमरे से निकलती ही नही।मैं उसे हटाने की क्षमता भी नही रखता।मेरी स्थिति पर कृपा पूर्वक एक सक्रिय दृष्टि डालिये।वैसे भी मैं धैर्य औऱ संतोष से तस्वीर से उठने वाली समस्याओं को घुलते हुए देख रहा हूँ।

सुना है इंसान के कमरे में लटकती हुयी तसवीर इंसान के विचारों को व्यक्त करती है।एक तस्वीर कमरे में लगाई जा सकती है हटायी जा सकती है लेकिन उसके बारे में क्या विचार है जो मेरे कमरे में लटकी हुई है।


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