बदलते परिवेश बदलते रिश्ते
बदलते परिवेश बदलते रिश्ते
बदलते परिवेश के बदलते रिश्ते,
आधुनिकता की दौड़ में,
कभी बनते कभी बिगड़ते रिश्ते,
चले गए हम दूर कभी,
कभी पास तुम आए नहीं,
अभिमान की आंच में टूटते से रिश्ते।
जीवन की भागदौड़ में कभी,
सड़कों में भागते ये रिश्ते,
कभी भाषा की तलवार से कटते,
कभी आवेश की आग मे जलते ये रिश्ते।
सम्मान की चाह में दर - दर भटकते कभी,
पथराई आँखों में आँसू लिए फिरते ये रिश्ते,
पहचान अपनी ढूंढने को व्याकुल कभी,
हजार नामों के बीच भी गुमनाम रिश्ते।
बदलते परिवेश के बदलते रिश्ते,
रिश्तों की आड़ में,
कभी बनते कभी बिगड़ते ये रिश्ते।।