ग़ज़ल
ग़ज़ल
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फ़ूल खिलेंगे चमन में प्यार के
दिन आयेंगे फिर से बहार के।
मुश्किल हों राहें चाहें जितनी
रुक न जाना राही थक हार के।
रौनकों में भी लगे सूना जहान
दिल लगता नहीं बिना यार के।
अन्तिम यात्रा भी होती नहीं पूरी
आरूढ़ हुये बिना कन्धे चार के।
पार नहीं लगाती नदी में नइया
खेवइया बिन अच्छी पतवार के।
वक्त नें किये हम पे इतने सितम
देख लिये सब रंग इस संसार के।
बेरौनक रहती "इरा" की जिन्दगी
बिन उत्साह परम्परा व त्योहार के ।