नादानी
नादानी
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ये आसमान में, अकेला, टँगा हुआ सूरज....
युगों से किसके लिए ख़ुद को जलाता होगा ?
कोई तो होगा क़ायनात में वो संग-ए-दिल
देखता होगा तमाशा, तमाशबीनों सा
ये सिलसिला बहुत नया नहीं, पुराना है,
दिलों की बात जुदा है, अलग फ़साना है
आशिकी के तमाम किस्सों में,
कोई नादान है पर कोई बहुत दाना है।