वक्त पंख लगाकर उड़ता रहा
वक्त पंख लगाकर उड़ता रहा
वक्त पंख लगाकर उड़ता रहा,
मैं पतंग की तरह उसे ढूंढता रहा।
हवाएँ चल रही धूल भरी थी चहूँ ओर
उन आँधियों में भी मैं ख्वाब अपना बुनता रहा।
वक्त पंख लगाकर उड़ता रहा,
मैं पतंग की तरह उसे ढूंढता रहा।
निराशा के क्षणों में भी मैं आश की बीज बुनता रहा,
अपनी नाकामियों के कारणों का कारण मैं ढूंढता रहा,
अपनी सुधार की हर कोशिश को अपने हाथों से चुनता रहा,
अवसर की तलाश में दिन-रात
मंज़िल पाने की आवाज़ को सुनता।
छोटी- छोटी सफलताओं में भी
मैं सुकून के पल ढूंढता रहा।
बड़ी - बड़ी अपराजय में भी
मिली सीख को चुनता रहा।
मैं उन उम्मीद की हाथों को गैर- मौजूदगी में भी
प्रेमपूर्वक दिन- रात चुमता रहा।
वक्त पंख लगाकर उड़ता रहा,
मैं पतंग की तरह उसे ढूंढता रहा।
दुनिया के वीराने पथ पर ठोंकरे खाते,
अपनी उद्देश्य प्राप्ति के लिए घूमता रहा।
मैं अपनी मंज़िल की तलाश में
हर उमंग को जुनून में बदलता रहा,
मौसम बदले या न बदले
मैं समय मुताबिक खुद को बदलता गया,
अपनी धुन में मगन मैं,
अपनी लगन में रमता गया।
वक्त पंख लगाकर उड़ता रहा,
मैं पतंग की तरह उसे ढूंढता रहा।