बुढ़ापे की बैंक
बुढ़ापे की बैंक
जमुना दास जी आज पार्क में बड़े उदास बैठे थे तभी उनके परम मित्र शंभू दयाल जी वहां आकर उनके कंधों पर हाथ रखते हैं।
अचानक जमुना दास जी अपने ख्यालों की चिर निद्रा से वापस लौटते हैं। क्या हुआ जमुना ? आज तुम इतने उदास से क्यों दिखाई दे रहे हो ? क्या हुआ कहां खोए हुए हो ?
शंभू दयाल जी ने उद्यान की बेंच पर बैठते हुए कहा। कुछ नहीं कुछ भी तो नहीं। पर शंभू दयाल जी समझ गए थे,.कुछ तो ऐसा है जो जमुना दास जी उन्हें नहीं बताना चाहते हैं, परंतु कुछ तो ऐसा हुआ है ? जिसकी वजह से वह व्यथित और व्याकुल है।
विचारों की बडी जद्दोजहद के बाद जमुना दास जी बोले, मेरे बेटे और बहू नहीं चाहते कि, मैं और मेरी पत्नी शारदा अब उनके साथ एक ही घर में रहे।
वह लोग चाहते हैं कि हम दोनों पास ही के" वृद्धा आश्रम सांदीपनि में चले जाएं" और अब से वही रहे, परंतु शारदा अपना घर अपनी गृहस्थी छोड़ कर कहीं भी नहीं जाना चाहती है।
शारदा कहती है, तिनका तिनका जोड़ कर कभी-कभी भूखे रहकर उसने यह घर बनाया था। इसको उसने बड़े अरमानों से एक खुशनुमा गृहस्ती में तब्दील किया था।
घर का हर कोना महकाने में बरसो लग गए।
जब आज फूल खिले हैं तो, वह उसकी खुशबू और उसकी महक का आनंद लेना चाहती है। उस महक में डूब जाना चाहती है। वह अपने आशियाने को छोड़कर कहीं और घोंसला नहीं बनाएगी। अगर कोई जिद जबरदस्ती उसके साथ हुई तो वह अपने" प्राण रूपी चिड़िया को अपने शरीर से त्याग देगी"।
मैं बहुत मुश्किल दौर से गुजर रहा हूं शंभू ! और बेटा बहू कहते हैं। आपका तो बुढ़ापा है। कहीं भी कट जाएगा। वह अपने दोनों बच्चे अवनी और अधिराज को लेकर कहां जाएगा और कहां भटकेगा और हम सबका एक साथ एक घर में गुजारा नहीं हो सकता है तो लिहाजा आप दोनों वृद्धा आश्रम जा कर रहे।
हम बीच इसमें आकर आपका हाल चाल लेते रहेंगे। शंभू अब तुम ही बताओ कि मैं क्या करूं?
शंभू दयाल जी ने जमुना दास जी से बोला।
तो क्या तुम दोनों वृद्ध आश्रम जाने के लिए तैयार हो गए हो ?
जमुना ! थोड़ा विचार करो, भाभी कुछ गलत तो नहीं कह रहीं हैं ?
भाभी जी सही तो बोल रही है। वह अपना घर छोड़कर क्यों जाएंगी ? जो उनके साथ नहीं रहना चाहता। वह घर छोड़कर जाए,और तुम दोनों उम्र के इस पड़ाव पर कहीं और डेरा क्यों डालोगे ? "तुम्हारी जड़े तो उस मिट्टी को स्वीकार ही नहीं कर पाएंगी और तो मुरझा कर पेड रूपी ये शरीर एक दिन मृत संवेदना हीन हो जाएगा"।
तुम्हारा और भाभी का मूल उसी घर की मिट्टी में है। इसलिए अपना समूल नष्ट करने के बजाय बेटा बहू को समझाने का प्रयास करो, और जरूरत पड़ी तो मैं भी कोशिश करूंगा। परंतु उसके बाद भी अगर उन दोनों को ऐतराज हो तो, वह अपने लिए " नया घरौंदा"कहीं और बनाएं, और वहां जाकर खुशी से रहें।
"मां बाप के घर को खाली कराकर अपना बिछोना सजाना ठीक बात नहीं।"
और फिर घर भी तो भाभी के ही नाम पर है तो, फिर तुम्हें घर छोड़ने के विषय में अपना मत प्यार देना चाहिए जमुना।
इसलिए मैं कहता था। जमुना की बच्चों को विदेशी संस्कार देने के बजाय और खुद से दूर रख कर विदेश में पढ़ाने के बजाय उन्हें अपने दिल के और अपने देश की मिट्टी की सोंधी सोंधी खुशबू के बीच रखना चाहिए था तुम्हें,और यहां के संस्कार यहां की रीति और अपनों का महत्व समझाना था।
जैसा कि मैंने अरनव (शंभू दयाल जी का बेटा) और लालिमा (शंभू दयाल जी की बेटी) के साथ किया। आज वो दोनो इतने ज्यादा मुझसे और मेरी पत्नी उर्मिला के नजदीक है, कि हमें कहीं भेजना तो दूर एक भी निर्णय हमारी सहमति और विचार विमर्श के बिना नहीं लेते, और ना ही हमारे बिना जीने का सोच भी सकते हैं।
"जमुना संस्कारों की बेल जहां के बीज हो वही की मिट्टी में पनपती है और मीठे फल देती है" पर...........खैर !
जब तुम अपने बेटे को विदेश पढ़ाई के लिए भेज रहे थे, मैंने तुम्हें तब भी समझाया था। कर्जा लेकर और अपनी सारी बैंक सेविंग समाप्त करके उसे बाहर पढ़ाने की क्या जरूरत है ?इकलौता बेटा है। उसे अपने पास रखते। "जितनी चादर उतने ही पैर पसारते" जमुना बहुत समझाया था तुम्हें मैंने।
तब तुमने बाद की बाद में देखेंगे। कहकर टाल दिया था,परंतु आज वही परिस्थिति तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो गई है जिसका मुझे अंदेशा था।
आज तुम्हारे पास ना ही पैसों की सेविंग और ना ही तुम्हारे बुढ़ापे का सहारा तुम्हारे साथ रहना चाहता है जमुना।
आज तुम्हारे बे बुढ़ापे की बैंक भी खाली हो गई है। हमारे बुढ़ापे की बेंक हमारा सम्मान होती है।,
जमुना। जो तुम्हारे बेटे ने पूरी तरह से खाली कर दी है।
हमारी बुढ़ापे की बैंक हमारे रिश्ते और हमारा सम्मान होती है जमुना।
खैर ! तुम अभी कोई फ़िक्र मत करो। बेटा बहू को समझाओ। अगर ना मानें तो उनकी अलग व्यवस्था करने के लिए उनसे कहो, तुम अपना घर किसी भी परिस्थिति में मत छोड़ना।
सेविंग नहीं है तो, कोई बात नहीं जमुना।अपना घर का एक हिस्सा किराए पर दो और जो आमदनी हो उससे अपनी गृहस्थी को चलाओ।
तुम दोनों का गुजारा अच्छे से हो जाएगा। इतना बड़ा घर जो है।
अपने जीवनसाथी को इस समय अकेला छोड़ना और उसे दुख देना ठीक बात नहीं है जमुना।जाओ, घर जाओ। भाभी तुम्हारा इंतजार कर रही होंगी। तुम्हें ना पाकर वह परेशान हो जाएंगी।
परंतु जमुना फिर से पुत्र मोह में आकर कुछ गलत फैसला मत कर लेना।
"हमारा सम्मान ही हमारी सेविंग्स होती है। हमारे रिश्ते यह हमारे बुढ़ापे की बैंक होती है"
जिसमें हमेशा हमारा सम्मान एक निधि के रूप में एकत्रित होता है और दिन-ब-दिन बढ़ता है।
जमुना यही तो सही मायने में हमारे बुढ़ापे की बैंक है।"