सांझ का दीपक
सांझ का दीपक
ओ माही रे ! लाली कंहा है तू ? देख " तुलसी पर रखा दिया बुझ न जाए, हवा तेज चल रही है।
कलमूही यह हवा कौन दिशा से आ रही है ?और यह सब कुछ उड़ा ले जाएगी। क्या ? रुक जा, कौन सा तूफान मन में समाए सन्ना रही है, बोलो तो?"
अरे ओ माही ! दीपक बुझे नहीं, तनिक आड दे देना । आज मन पता नहीं क्यों इतना घबरा रहा है, पता नहीं क्या होने वाला है।
सगुना देवी का इकलौता बेटा सरहद पर तैनात है, और युद्ध तो आसपास नहीं है, पर वह हमेशा रूप सिंह को लेकर परेशान रहती है। इकलौता बेटा जो ठहरा।
अभी एक साल पहले ही रूप सिंह की शादी मालती के साथ हुई थी। मालती सुंदर सुशील गुणवंती सब को एक साथ लेकर चलने वाली लड़की है। "रूप सिंह सरहद पर जाते जाते अपने माता-पिता और छोटी बहन माही की जिम्मेदारी मालती के ऊपर छोड़ कर गया है"।
मालती आज से मेरा यह परिवार तुम्हारा है। इन सब की जिम्मेदारी में तुम्हारे काधों पर छोड़कर जा रहा हूं। "मैं सरहद पर रहूंगा, पर मेरी हर सांस इस घर और तुम्हारे साथ रहेगी। "तुम अपना ख्याल रखना और सब घर वालों का भी, रूप सिंह जाने से 2 दिन पहले अपनी मालती को समझा रहा था।
जाने का दिन कैसे नजदीक आ गया। हस्ते गाते पता ही नहीं चला। कल रूप सिंह को सरहद पर ड्यूटी के लिए निकलना था।
मां पिताजी और माही भाई के जाने पर दुखी हैं पर कोई भी रूप सिंह को जताना नहीं चाहता। घर का कोई भी सदस्य नहीं चाहता। रूप सिंह दुखी होकर घर से निकले तो सभी अपने अपने आंसुओं को एक दूसरे से छुपाने का झूठा प्रयास कर रहे थे।
जाने वाला दिन भी आ गया। मालती अपने दिल की तेज धड़कन और आशु को छुपा कर हंसने का प्रयास करते करते रास्ते के लिए खाना वाना सब बना रही थी।
इतने में रूप सिंह रसोई में आ जाता है और मालती को अपनी बाहों में भर लेता है। मालती सब तैयार है, ना !मालती ने अपने आंसू से डबडबाई आंखों से अपने दिल का हाल बयां कर दिया।
रूप सिंह ने मालती को सीने से लगा लिया। तुम चिंता क्यों करती हो? मैं जल्दी वापस आ जाऊंगा।
यह 3 महीने देखते-देखते गुजर जाएंगे और मैं तुम्हारे पास वापस ।
देखो तुम अभी मत जाओ। थोड़े दिन बाद चले जाना, तब नहीं रोकूंगी। पर अभी तुम्हारे साथ रहने से मेरा मन नहीं भरा। अभी तो मायके से लौट कर आई हूं, और अभी तुम चल दिए।
मालती "जैसा मेरा तुम्हारे साथ सिर्फ तुम्हारे साथ रहने का वादा है। वैसे ही देश की माटी से भी मेरा वादा है। इसकी रक्षा का मुझे मेरे फर्ज और माटी के कर्ज से दूर करने की कोशिश मत करो"।
मालती वादा है। जल्दी लौट कर आऊंगा। पर मालती मुझे तुम एक वादा करो, देखो ! मैं जानता हूं, तुम पढ़ी लिखी हो, समझदार हो, मेरे घर मां, बाबूजी और माही का ख्याल रख सकती हो।
हां, वह तो सब ठीक है।
पर तुम मुझे यह सब क्यों बता रहे हो?
देखो मालती !
अगर कभी मैं नहीं लौट पाया, क्योंकि अभी सरहद पर कोई युद्ध नहीं है, पर कभी भी हो सकता है, तो तुम, एक वादा करो। तुम सब का ख्याल रखो गी और अपना भी । माही के ब्याह की जिम्मेदारी मैं तुम पर सोपता हूं।
मां बाबूजी का ख्याल रखना हां एक बात और "मुझे सफेद रंग से बहुत नफरत है। तुम कभी अपने ऊपर सफेद रंग मत ओढ़ना। अगर तुम शहीद की बेवा हो भी जाओ तो भी, फर्क के साथ सर उठाकर जीना और आज जैसी रहती हो। वैसे ही हमेशा रहना"। मैं चाहे कहीं भी रहूं। यहां या उस जहां में मैं हमेशा अपनी मालती को रंगों और खुशियों से भरा देखना चाहता हूं।
वादा करो ! तुम हमेशा ऐसी ही रहोगी।
मालती ने रूप सिंह के होठों पर हाथ रखा और कहा खबरदार जो ऐसी बात दोबारा की है तो।
अभी तो तुम्हारे साथ मैंने अपना जीवन शुरू किया है।और तुम ऐसी बात करते हो?
इधर माही एक कोने में खड़ी होकर भैया और भाभी का संवाद सुन रही थी। उसकी आंखों में आंसू थे। बहुत कुछ कहना भी चाहती थी, परंतु अपने बढ़ते कदमों को माही ने वही रोक लिया।
उसने सोचा यह वक्त केवल और केवल भाभी का है, और इस वक्त पर अधिकार भी सिर्फ भाभी का ही है, और वहां से चली गई।
थोड़ी देर वहां रुक कर रूप सिंह मां के पास आ जाता है। मां आज मैं जा रहा हूं। आपको तो पता है ना मेरी शाम की ट्रेन है। मां अपना और बाबूजी का ख्याल रखना मैं रोज फोन करने की कोशिश करूंगा। सगुना देवी का गला भर आया और वह रुप सिंह का सिर अपनी गोद में रख कर रोने लगी। रूप में तेरे बिना कैसे रह पाती हूं, यह तो मेरा कलेजा ही जानता है। पर तू इस बार इतनी जल्दी क्यों जा रहा है थोड़े दिन बाद चले जाना।
नहीं मां, फोन आया है, मुझे जाना ही पड़ेगा । और आपने मुझे कभी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ ना नहीं सिखाया। फिर आज क्यों मुझे मेरे फर्ज से रोक रही हो। अब तो तुम्हारा और बाबूजी का ख्याल रखने को मालती भी है। वह तुम सब का ख्याल रखेगी। मेरी सभी जिम्मेदारियां मालती निभाएगी और उठकर, रूप अपने बाबूजी के पास चला जाता है। बाबू जी मैं जा रहा हूं। आप अपना ख्याल रखना, सारी दवाईयां समय पर ले लेना जल्दी सो जाना। "इतना सुनकर बाबूजी की आंखें छलक आती है। बेटा कहकर रूप सिंह को छाती से लगा लेते हैं। बूढ़ा बाप खुलकर रो भी नहीं सकता। रूप पर तू जल्दी लौट आना। फिर हम दोनों शतरंज खेलेंगे "और.....
काफी देर रुक कर रूप सिंह माही से मिलने आता है। माही खिड़की के पास खड़ी होकर बाहर देख रही थी। जैसे ही रूप सिंह कमरे में आता है। भैया देखो ना मुझे आज भी याद है। आप और मैं घंटों वहां खेलते रहते थे। आम के पेड़ के नीचे कैसे आप मेरी छोटी खींच खींच कर सताते थे। मुझे फिर कैसे मैं आपके पीछे दौड़ कर भागती थी। याद है आपको कहती थी जब आप अपने काम पर जाओगे तब मुझे अच्छा लगेगा। मुझे कोई तंग ही नहीं करेगा। कहते हुए माही रूप सिंह से लिपट जाती है।
भैया अभी मत जाओ और रो पड़ती है रुक जाओ ना !
अरे मेरी छुटकी, क्या हुआ ? तुझे तो खुश होना चाहिए। अब तेरी चोटी कोई नहीं खींचेगा। अब तुझे कोई नहीं सताएगा ।
नहींभैया !
अरे हमेशा के लिए थोड़े ही जा रहा हूं। जल्दी वापस आ जाऊंगा। तेरा ब्याह भी तो करना है और तुझे घर से हंस कर विदा भी करना है।
इधर मालती दरवाजे पर खड़ी दोनों भाई बहनों का लाड देख रही थी।
अरे मालती तुम,
इधर आओ ।
जी कहिए !
रूप सिंह माही का हाथ मालती के हाथ में देता है। मालती माही आज से तुम्हारी जिम्मेदारी है। बहन समझो या बेटी बस इसका ख्याल रखना यह मेरी अमानत है। तुम्हारे पास और दोनों को सीने से लगा लेता है।
इधर मां बाबूजी भी दरवाजे पर खड़े सब कुछ देख रहे थे।
बहू जा तुलसी पर "सांझ का दीपक" लगा दे।
थोड़ी देर बाद रूप सिंह का स्टेशन जाने का वक्त हो जाता है, और रूप सिंह घरवालों से विदा लेकर स्टेशन पहुंचकर ट्रेन से रवाना हो जाता है।
काफी दिन हो जाते हैं। रूप सिंह को गए।
इधर लड़के वाले माही को देखने आते हैं। रिश्ता भी तय हो जाता है। लड़के वाले माही को जल्द से जल्द ब्याह कर ले जाना चाहते हैं, परंतु माही अपने बड़े भाई के बिना शादी के लिए तैयार नहीं होती है, तो,सब लोग माही के भाई प्रेम और उसकी इच्छा का मान रखते हुए 6 महीने बाद का शादी का मुहूर्त पक्का कर देते हैं।
घर में एक और खुशखबरी मालती को अपने आने वाले बच्चे की खबर होती है। सबसे पहले यह बार यह खबर रूप सिंह को देती है। रूप सिंह खबर सुनकर खुश हो जाता है और बेचैन भी । इतनी जल्दी छुट्टी भी नहीं मिलेगी मालती !तुमने जो खबर सुनाई है, मैं एक पल भी यहां रुक नहीं पा रहा हूं। मैं आ तो नहीं सकता पर मेरा वादा है, जल्द ही आ जाऊंगा ।और फोन कट जाता है।
मालती की उम्मीद की खबर माही पूरे परिवार में थाल बजा बजा कर दे देती है कि वह बुआ बनने वाली है। घर में उदासी के बाद छोटे रूप सिंह के आने की खबर से पूरा घर इस नई चांदनी में सराबोर हो जाता है।
तीन महीने और बीत जाते हैं, पर रूपसिंह घर नहीं लौट पाता। हर बार उसकी छुट्टियां स्थगित हो जाती है। वह जब भी घर फोन पर बात करता है, सबको जल्दी आने की तसल्ली देता है।
कुछ दिन बाद रूप सिंह की छुट्टियां मिलना तय हो जाता है। कुछ दिन और बीत जाते हैं। तकरीबन 20 दिन बाद सूचना आती है की लड़ाई शुरू हो गई है। रूप सिंह के घर पर निकलने से 2 दिन पहले यह सूचना मिलती है और सब की छुट्टियां रद्द हो जाती है। उसमें रूप सिंह की छुट्टियां भी रद्द हो जाती है और जो जवान घर गए थे, उनके लिए भी वापसी के निर्देश जारी हो जाते हैं।
रूप सिंह के घर आने की जो उम्मीद होती है, वह भी मन में ही रह जाती है। पर वह अपनी पूरी मातृ शक्ति के साथ मिशन का हिस्सा बनता है ।
और घर सूचना करवा देता है।" अभी भारत मां को अपने बेटे की जरूरत है। इसलिए रूप सिंह की मां और पत्नी को थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा।"
सब लोग लड़ाई खत्म होने की प्रतीक्षा करते हैं।
रोज भगवान और तुलसी पर दिया रखकर रूप सिंह की लंबी उम्र की प्रार्थना करते हैं। काफी दिन बीत जाते हैं। रूप सिंह की खबर नहीं आती तो पूरा घर अधीन हो उठता है। उसके जीवन के लिए ।
आए दिन सिर्फ टेलीविजन समाचार और न्यूज़ में शहीद हो गए। जवानों के विषय में सूचना मिलती है,
तब मन और भी ज्यादा अधीर वह उठता है। रूप सिंह की याद में और ज्यादा मचलने लगता है।
मालती अपने पेट में पल रही नन्ही सी जान के साथ किसी तरह खुद को संभाल घर परिवार की सेवा और काम में अपने मन को उलझा रखने का प्रयास करती है
परंतु कभी-कभी अकेले में रो कर मन हल्का कर रूप सिंह की तस्वीर से, आ जाओ ना ! करके शिकायत करती है।
फिर भगवान के सामने अपने पति की लंबी आयु के लिए दिया जलाकर प्रार्थना करती है।
ऐसे ही 15 दिन और बीत जाते हैं। युद्ध को देखते-देखते ।
एक दिन पूरा परिवार साथ में बैठकर टीवी देख रहा था। अचानक फोन की घंटी बजी सबका दिल बैठ गया, सब ने तब डर और कप गए, रूप सिंह को लेकर ।
रूप सिंह की मां ने डरते हुए फोन उठाया ।
नहीं !
नहीं .... ! नहीं.... ! यह नहीं हो सकता, और कहते हुए सगुना देवी के हाथ से फोन छूट जाता है, और वह स्तब्ध होकर नीचे गिर पड़ती है।
रूप सिंह के बाबूजी फोन को उठा कर बात करते हैं तो उन्हें खबर मिलती है। रूप सिंह की कोई खबर नहीं है। 10 दिनों से वह लापता है। बहुत सारे सैनिकों के शव मिले हैं जिन्हें दुश्मनों द्वारा बम से उड़ा दिया गया है। सारे शव इस तरह क्षतिग्रस्त हो गए हैं कि पहचानना मुश्किल है। लिहाजा 10 दिन की खोज के बाद हमें सूचित करना पड़ रहा है कि "रूप सिंह देश के लिए शहीद हो गए"।
पूरे घर में मातम छा जाता है। जिस घर में बहन की शादी की शहनाई ,बच्चे की किलकारी गूंजने वाली थी, वहां सन्नाटा छा जाता है।
रोने की आवाज सुनकर आस-पड़ोस की औरतें और और भी लोग आते हैं। सबको ढांडस बधाते हैं, पर ऐसे में कोई कैसे अपने आप को संभाले समझ नहीं आता।
इस सदमे से मालती बेहोश हो जाती है। डॉक्टर को बुलाकर मालती को दिखाया जाता है। डॉक्टर कहता है सदमा है, ख्याल रखना होगा।
कहीं किसी वजह से गर्भपात ना हो जाए। कैसे भी हो, मालती को खुश रखने की कोशिश करनी होगी।
यह सुनकर मालती के मायके वाले जो वहां खड़े सब कुछ सुन रहे थे। उन्होंने मालती को अपने संग ले जाने की इच्छा जाहिर की। अब मालती यहां रह कर भी क्या करेगी।
किसी ने कुछ नहीं कहा। सारा फैसला मालती के ऊपर छोड़ दिया ।
सब लोग चुप थे। किसी ने कुछ भी नहीं कहा। सारा फैसला मालती पर छोड़ दिया जाता है। मालती को जब होश आता है तो वह, अपनी सास के गले मिलकर बहुत रोती है।
मालती की मां मालती को अपने साथ चलने के लिए कहती है। तुम मेरे साथ चलो मालती। अब यहां रहकर और रुक कर क्या करोगी,।
नहीं मां !
मैं आपके साथ नहीं चल सकती। आपने ही तो कहा था। मेरी शादी के समय आपसे यही तुम्हारा घर परिवार है और रूप सिंह के मां बाबूजी ही तुम्हारे माता-पिता ।
आज आप मुझे अपने साथ चलने के लिए कह रही है।
आज आप मुझे अपने फर्ज को अदा करने से रोक रही है।
क्या चाहती हैं, आप ?
इस घर ने अपना इकलोता बेटा खोया है, और अब बहू और उसकी कोख में पलने वाला बच्चा भी खो दें।
नहीं मां, !
मैं अपने मां बाऊजी और माही को छोड़कर कहीं नहीं जा सकती हूं। अभी मुझे इनकी सारी जिम्मेदारियां संभाली है। इनका बेटा बनना है। इनके बेटे ने सरहद पर जाते समय मुझे इन सब की जिम्मेदारी संभालने के लिए कहा था, और मैं अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हट सकती और ना ही इन जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ सकती हूं।
आप अपने घर जाएं मां मैं अपने घर में खुश हूं।
उस दिन सभी लोग सांत्वना देकर अपने अपने घर चले जाते हैं।
2 दिन के पश्चात !
आस पड़ोस की महिलाएं सब मिलकर सगुना देवी को याद दिलाती हैं। पति के चले जाने की बात की रस्में निभानी है।
सगुना ! बहू की चूड़ियां उतारनी है। मांग का सिंदूर धोना है और सफेद साड़ि भी तो मालती को पहनानी है।
कब तक ऐसे सजी-धजी घूमती रहेगी ?
सब लोग क्या कहेंगे रूप की मां ?
मांग का सिंदूर धोना है और सफेद साड़ी भी त मालती को पहनानी है,
तुम लोग यह क्या कह रहे हो ?अभी मेरे बेटे के विषय में कुछ भी तो ज्ञात नहीं है हमें ?
कब तक ऐसे सजी-धजी घूमती रहेगी रूप की मां ?
सब लोग क्या कहेंगे ?
रूप की मां !
सगुना देवी तैयार हो जाती है और रूप सिंह के बाबूजी को बाहर जाने के लिए कहती हैं।
आप थोड़ी देर के लिए बाहर चले जाइए। रूप के बाबूजी ।
कुछ रस्में हैं, जो इन औरतों को करनी है।
मालती बेटा बाहर आंगन में आ जाओ।
हां आती हूं। माजी
मालती ने जवाब दिया।
क्या बात है मांंजी ?
कुछ काम है।
बाहर आंगन में जाकर पट्टे पर बैठ जाओ, मालती ।
मालती के लाख मना करने के बाद भी रस्मों के नाम पर जबरदस्ती रस्मे निभाने की प्रक्रिया मोहल्ले की औरतें शुरू करती हैं।
वह सब मिलकर मालती के ऊपर बाल्टीओ से पानी डाल डाल कर उसका मांग का सिंदूर बहा देती हैं। बिंदी निकाल देती है।
जैसे ही चूड़ियों की तरफ उनका हाथ बढ़ता है, मांही आकर अपने भाभी का हाथ पकड़ कर वहां से उठा देती है।।
खबरदार जो किसी ने मेरी भाभी की चूड़ियों को हाथ भी लगाया तो, भाभी अपनी चूड़ियां नहीं तोडेंगे ना ही वह सफेद साड़ी अपने तन पर डालेंगे। "वह क्या इस अवस्था में स्वयं अपनी खुशी से है"। फिर उनके साथ इस तरह का दुर्व्यवहार क्यों कर रहे हैं आप ?
सगुना ! अपनी बेटी को समझा दे। बड़ों के काम में दखल अंदाजी ना करें। हमें हमारा काम करने दे।
कैसी औरतें हैं,आप लोग?
आप लोग भाभी की हालत देखकर भी .....आप को तरस नहीं आता।
कोई आपके शरीर से यह सब इस प्रकार खींचे तो आपको कैसा लगेगा ?
और माँ आप !
आप तो सब जानती हो ना !भाभी को हमेशा खुश देखना और सजा सवंरा देखना चाहते थे भाई ।
आप भी इन औरतों के साथ मिलकर उनकी इच्छा का निरादर कर रही हो।
भाई दुनिया में नहीं रहे,हमें यह खबर तो नहीं मिली है ना ! वह लापता है, मिल जाएंगे मां । यह सब बंद करवा दो।
भाभी पर रहम खाओ, माँ ।
वह हमारे लिए, हमें संभालने की वजह से अपने मायके नहीं गई ।
और आप आप लोग यहां से चले जाइए या कुछ और सुनना है आपको ?
अगर मेरा भाई शहीद भी हो गया, तो आप जैसे तमाम लोगों की खुशियों को सुरक्षित करने के लिए और आप को सुरक्षित माहौल प्रदान करने के लिए मेरा भाई शहीद हुआ है। "एक शहीद की पत्नी बेवा नहीं होती, अपितु अमर सुहागिन होती है"।
आप लोग कृपा करें और मेरे घर से अभी इसी समय निकल जाए।
भाभी आप यहां से चलो, आप वैसे ही रहना जैसे भाई के सामने रहा करती थी।
और मां आप भी?
मुझे माफ कर दे माही ।
माफी मांगना है, तो, मुझसे नहीं भाभी से मांगीये,
जिनके समर्पण का अपने अपमान किया और करवाया है।
मुझे माफ कर दे बहू ,
मैं भूल गई थी।
मुझे माफ कर दे !
नहीं माजी ,
मुझसे माफी मांग कर मुझे शर्मिंदा मत कीजिए।
जरूर मैंने कुछ अच्छे कर्म किए होंगे, जिसकी वजह से तेरे जैसी बहू मिली है।
मुझे माफ कर दे बहू,
आगे से ऐसा नहीं होगा।
माँजी,
और मालती अपने सास के गले लग जाती है।
3 महीने बाद माही की शादी तय थी। मां हम माही की शादी तय मूहरत पर ही करेंगे। उनकी भी इच्छा यही थी। माही खुशी-खुशी अपने घर विदा हो जाए नहीं।
भाभी मैं शादी नहीं करूंगी।
अरे पगली क्यों नहीं करेगी ?तुम्हारे भाई होते तभी क्या तुम मना कर देती ? भाभी है इसलिए मना कर रही हो।
सब कुछ सामान्य तो नहीं था, परंतु मालती अपनी जिम्मेदारियों का वह पूरी ईमानदारी से करने का प्रयास कर रही थी।
बहू जा तुलसी पर "सांझ का दीपक" लगा दे।
माही कहीं दिख नहीं रही है मांजी ? कहाँ हे वो ?
वही आंगन में बैठी है। उदास ।
बेटा शादी को दो दिन ही रह गए हैं ना !
अपने भाई को याद कर रही है। बेटा होता तो घर में सन्नाटा ना होता।
बहू जा तू दीपक लगा दे,
ठीक है मांजी !
हां
ठीक है
"मैं सांझ का दीपक "लगा देती हूं।
अरे यह क्या माजी बिजली चली गई।
आज हवा भी बहुत तेज चल रही है। कहीं दिया बुझ न जाए,
माही ओ "माही देख तो बेटा ! तुलसी पर दिया रखा है। वह बुझ न जाए।
आज हवा ना जाने क्यों इतनी तेज चल रही है। लाली देख तो जरा कलमुही कौन दिशा से आ रही है। अरे सब कुछ उड़ा ले जाएगी। क्या रुक जा कौन सा तूफान मन में लिए सन्ना रही है"।
माही देख जरा तुलसी पर दिया बुझ न जाए, हवा तेज चल रही है। कल मूवी यह हवा कौन दिशा से आ रही है और यह सब कुछ उड़ा ले जाएगी।
हां मैं देखती हूं,
माही जैसे ही दिए की रोशनी को अपने हाथों की हथेलियों की आड़ बनाकर हवा से बचाती है। उसे किसी का स्पर्श अपने हाथों पर लगता है। दिए को थोड़ा ऊपर करके देखती है तो खुशी से...
मां ! मां ! देखो कौन ?
मां भाभी जल्दी आओ !
भाभी जल्दी आओ।
देखो कौन आया है,
माही की आवाज में रुदन और खुशी दोनों झलक रहे थे।
अरे माही कौन है ? क्यों इतना शोर मचा रहे हैं,
तू ?
सब लोग आंगन में आ जाते हैं। कौन है माही ?
इतने में बिजली आ जाती है। अरे आप !
लल्ला तू ......तू ही है ना लल्ला ।
रुप को देख, सभी अचंभित और स्तब्ध खडे रह जाते है, उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता।
सब झूम उठते हैं। मालती बस एक टक बिना पलक झपकाए रूप सिंह को देख रही थी।
रूप तू लौट आया ।
बेटा मालती बाहर आ देख बेटा देख रूप लौट आया है।
हां बाबू जी आपका बेटा लौट आया है।
अरे मेरी छुटकी तू मेरे बिना शादी कैसे कर सकती है। देख मैं आ गया।
मां कैसी हो, तुम ?
कंहा था रे तू ?
कहां था ? तेरे बिना हम सब जिंदा तो थे पर जीती जागती लाश की तरह ।अब तू आ गया है। हम सब फिर भी उठेंगे।
सगुना देख !मेरी लाठी वापस आ गई। सगुना मेरा गुरूर लौट आया है। देख मेरा बेटा आ गया शगुना देख।
सगुना मेरी लाठी वापस आ गई है। सगुना देख मेरा बेटा आ गया। शगुना देख ।
मालती दौड़कर भगवान के मंदिर में आंख बंद करके बैठ जाती है। यह सपना तो नहीं भगवान अगर सपना है तो मैं आखं नहीं खोलना चाहती। कम से कम इनकी छवि तो है। मालती अपनी बड़ी हुई धड़कनों को शांत करने की पूरी कोशिश करती है।
मालती !
मालती !
कौन ?
मैं तुम्हारा रूप !
नहीं, तुम सपना हो। मैंने आंखें खोली तो सपना टूट जाएगा और तुम चले जाओगे रूप !
मालती आंखें खोलो, मैं सपना नहीं हूं। मैं तुम्हारा रूप हूं। मैं सचमुच तुम्हारे पास वापस आ गया हूं।
मालती मैं कहीं नहीं जाऊंगा। मैं तेरा रूप हूं। मारती आंखें खोल और रूप मालती को अपने सीने से लगा लेता है, कहीं नहीं जाऊंगा। पगली मैं वापस आ गया हूं। तेरे पास।
फिर सभी मिलकर तुलसी जी पर "सांझ का दीपक" जलाते हैं और चारों तरफ खुशियां फैल जाती है।
दूसरे दिन घर में माही की शादी का प्रोग्राम होता है और सभी लोग अपनी जिम्मेदारियां पूरी खुशी के साथ निभाते हैं।
रूप सिंह और मालती मिलकर माही का कन्यादान करते हैं और दुआओं के साथ उसे बहुत सारे उपहार भी देते हैं।
और देते हैं एक वादा हमेशा उसका साथ निभाने का।
खुशी खुशी पूरा परिवार माही की शादी करके उसको ससुराल विदा कर देता है। कुछ महीने बाद मालती खूबसूरत जुड़वा बच्चों को जन्म देती है। घर में हर तरफ बस खुशियां ही खुशियां छा जाती है।
"सांझ का दीपक सांझ को वापस आ जाता है।"