Sheetal Raghav

Inspirational Children

3.7  

Sheetal Raghav

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डोर !!

डोर !!

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रामदयाल बाबू एक संयुक्त परिवार में रहते थे। हंसती खेलती खूबसूरत गृहस्थी को विमला देवी ने बड़े प्यार से संजो कर रखा था। 

वही दोनों इस घर की मुखिया थे। रामदयाल बाबू यदि गृहस्थी के लिए पैसे का प्रबंध करते थे, तो वहीं विमला देवी उन पैसों का सही इस्तेमाल कर गृहस्थी रूपी बगिया को चमकाया और महकाया करती थी। 

"उनका एक छोटा परंतु सुखी परिवार था जिसमें उनके बेटे बहू और उनके दो पुत्र ऋत्विक और सात्विक उनके साथ रहते थे।" पूरा घर उन दोनों पूरा घर उन दोनों बच्चों को सभ्य और शिक्षित बनाने के प्रयास में ही लगा रहता था। और ऋत्विक और सात्विक को अच्छे संस्कार और सीख देने का प्रयास करता रहता था। 

"चूंकि पांचों उंगलियां समान नहीं होती। वैसे ही वे दोनों पोतो का स्वभाव एक-दूसरे से बिलकुल भिन्न और विपरीत था।"

 एक पोते की आयु 9 वर्ष और दूसरे की आयु 14 वर्ष थी। 

"बड़ा पुत्र रित्विक स्वभाव से अल्हड़ और आजाद ख्यालों वाला था। उसे आजादी बहुत लुभाती थी घंटों, घर के बाहर रहना दोस्तों से बातें करना और रोक-टोक तो उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं थी।" 

इसके विपरीत "छोटा बेटा सत्विक जैसा नाम वैसा ही गुण उसे परिवार के बीच रहना बातें करना एवम् स्वयं कार्यों में सहयोग करना और हर कार्य को करते हुए सबका परामर्श कर लेना और बैठकर दादा दादी के साथ ज्ञान धन की बातें करना अच्छा लगता था।" इसी वजह से वह सभी घरवालों का लाडला था।

बड़े पोते के व्यवहार को लेकर सारा घर अक्सर परेशान रहता था। इसे परिवार का महत्व कैसे सिखाएं। कैसे सबके बीच उठना बैठना सब के साथ सम्मिलित परिवार में रहना सिखाएं। उसका आजाद खयाल और उसकी आजाद ख्यालों वाली सोच कहीं उसे परिवार से दूर ना ले जाए। 

इसको सोचकर स्वयं रामदयाल जी और उनके बेटे रामेश्वर दयाल जी अक्सर परेशान रहा करते थे।

जनवरी का महीना था मकर संक्रांति का दिन आया दिन भर में पूजा पाठ कर तिल गुड़ प्रसादी और पकवान खाकर पूरा घर घर के बड़े प्रांगण में पतंग उड़ाने पहुंचे। पतंग आसमान को छूती हुई काफी ऊंचाई पर स्वच्छंद उड़ रही थी। पापा मांझे की चकरी पकड़े हुए थे तो ऋत्विक पतंग उड़ा रहा था। जब ऋतिक ने देखा उसकी पतंग आसमान में सबसे ऊंची उड़ रही है। उसके पापा को और ढील देने के लिए कहा, उधर सात्विक और दादाजी पतंग उड़ा रहे थे। एक संतुलन बनाकर उनकी पतंग की स्वच्छंद उड़ रही थी। वायु की गति के अनुरूप ।

 रित्विक सात्विक की पतंग को देखकर बोला, पापा सत्विक की पतंग ऊपर जा रही हैं। आप और ढील दे दो मुझे उसकी पतंग से ऊपर अपनी पतंग को उड़ाना है। 

रामेश्वर दयाल जी ने लाख समझाने और मना करने के बाद भी रित्विक नहीं माना और ढील देता गया। पतंग का मांझा चकरी से निकल कर भाग गया और पतंग हाथ से छूट गई। थोड़ी देर तो पतंग आसमान में उड़ती रही। उसके बाद जमीन पर आ गिरी। रित्विक मायूस हो गया। पापा मेरी पतंग क्यों छूट गई ? और सात्विक की पतंग क्यों उड़ रही है ? और उदास होकर घर वापस आ गया। 

सब लोग भी थोड़ी देर बाद घर में वापस आ गए। 

तब रामदयाल जी ने अपने दोनों पोतों को अपने पास बुलाया और रित्विक से उसकी नाराजगी का कारण पूछा। तब रित्विक ने पतंग वाली सारी बात दादा जी को बता दी। 

रामदयाल जी ने रित्विक के सिर पर प्यार भरा हाथ फेरा और समझाया। "मनुष्य का जीवन भी पतंग की तरह ही होता है। बेटा ! आजादी अच्छी चीज हमें स्वच्छंद बिना रोक-टोक उड़ना आना चाहिए। पर एक डोर हमें हमेशा पकड़ कर रखनी चाहिए।

वह होती है परिवार के संस्कारों और आदर्शों की डोर यही वह डोर है जो हमको गलत रास्ते पर जाने से रोकती है और हमें परिवार से बांध कर रखती है।यही आदर्श जो हमें उड़ने का साहस भी देते है, परंतु गलत रास्ते पर जाने से बचाती भी है जब हम गलत कार्यो  और गलत रास्ते की तरफ अग्रसर होते हैं तो यह डोर परिवार द्वारा खींचे जाने पर हमें याद दिलाती है। यह गलत है और हमारा स्वयं का विवेक इस्तेमाल करने के लिए हमको मजबूर कर देती है 

रित्विक बेटा पतंग हो या रिश्ते उनको उतनी ही ढील दी जानी चाहिए। जितनी उनके लिए अवाश्यक हो अतिरिक्त ढील कभी-कभी हमारे लिए अनावश्यक होती है और हानिकारक भी होती है।

और हमें अतिरिक्त ढील की आवश्यकता क्यों है? जब हम अपने संस्कारों में बंध कर अपने हित में कार्य कर सकते हैं।

यह डोर बहुत महत्वपूर्ण होती है। इसका मोल समझो ऋत्विक बेटा!

यदि यह डोर ना हो तो और अगर मजबूती से ना पकड़े रहो तो, "उस पतंग की तरह परिवार से बिछड़ जाने पर तुम कुछ देर तो उस समय तुम आकाश में उड़ते रहोगे, किंतु उसके बाद पतंग की तरह जमीन पर उल्टे मुंह गिर पड़ोगे।" 

इसलिए परिवार और उसकी ज्ञान रूपी मार्गदर्शन करने वाली डोर को हमेशा अपने साथ रखना और पकड़ कर रखना बहुत जरूरी है। 

"मैं समझ गया दादा जी आज से मैं सबके साथ रहकर कोई भी निर्णय अपने आप ना करते हुए बल्कि उसमें सबका सहयोग लूंगा और हर परिस्थिति में इस डोर को कसकर पकड़े रहूंगा क्योंकि हम परिवार के सदस्य पतंग है और आप और आपके आदर्श हमारी डोर।"।


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