पिता : एक आस
पिता : एक आस
" पिता, परिवार का मजबूत स्तंभ है, परंतु इसकी अपनी भी कुछ इच्छाएं होती है। परंतु परिवार बच्चे जिम्मेदारियां इन्हें अक्सर उनकी इच्छाओं से विरक्त और दगा करने पर और अपनी ही इच्छाओं का गला घुटने पर मजबूर कर देते हैं " ।
सब का ख्याल रख
यह कथा " किसी एक पिता की नहीं अपितु उस हर एक पिता की है जो, अपने परिवार व बच्चों की जिम्मेदारियां निभा कर उन्हें काबिल इंसान बनाना चाहता है"।
इसके लिए कई बार वह अपनी इच्छाओं का गला घोट देता है। यह कहानी भी इसी तरह के एक किरदार पर आधारित है।
इस कहानी का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी व्यक्ति विशेष से कोई संदर्भ नहीं है। यह पूरी तरह से काल्पनिक है। अगर यह घटना या कहानी किसी व्यक्ति से संबंधित पाई जाती है तो वह सिर्फ एक इत्तेफाक होगा।
" सतीश एक खूबसूरत गठीला नौजवान है। जिसे नए नए मोबाइल न्यू टेक्नोलॉजी से अवगत रहना अच्छा लगता है। मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मा सतीश बड़ी बड़ी इच्छाए रखता है "। परंतु मध्यम वर्गीय परिवार की अपनी एक मजबूरी होती है। वह ज्यादा लंबे पैर नहीं पसार सकते वरना कहीं ना कहीं से शरीर कहीं ना कहीं से चादर के बाहर आ ही जाता है।
इसलिए चाह कर भी वह अपनी इंजीनियरिंग पूरी नहीं कर पाया। जिसकी वजह से उसे मन मन मारकर एक छोटी-मोटी नौकरी करनी पड़ी।
" सतीश का विवाह हुआ। श्रीमती बहुत समझदार और वाणी की मृदुभाषी एवंम सरल मिली । नाम सरला और उतनी ही सरल "।
कुछ साल बाद.......
कुछ साल बाद सतीश के घर एक बेटे का आगमन हुआ। परिवार बहुत खुश था। सभी प्रेम पूर्वक जितना था उतने में सबर कर खुशी खुशी रहते थे। बेटा भी 5 साल का हो गया था । सतीश अपनी नौकरी से खुश तो था ।परंतु...........परंतु पैसे कहीं ना कहीं कम पड़ जाते थे।
" एक दिन पिता का देहांत हो गया। अब तो घर की सारी जिम्मेदारियां सतीश के कंधों पर आ गई। वरना पिताजी भी थोड़ा बहुत कमा ही लेते थे " ।
पिता को गये तकरीबन छह माह ही बीते थे कि,
" सुनो............... मैं फिर से मां बनने वाली हूं और आप पिता...... "।
सतीश खुश तो बहुत हुआ । परंतु परेशान भी ।अभी खर्चे पूरे नहीं पढ़ते थे। फिर आने वाले बच्चे का खर्चा ।परंतु सब किस्मत के हवाले कर आने वाले बच्चे की खुशी में लग गया।
" मैं ज्यादा मेहनत करूंगा। आज से मैं अपने आप से वादा करता हूं सरला । मै अपने बच्चों के भविष्य के लिए हर संभव कार्य करूंगा और ज्यादा से ज्यादा मेहनत करूंगा " ताकि मेरे बच्चों को मेरी तरह न भटकना पड़े।
सरला को भगवान ने दोहरी खुशी से नवाजा । उसके घर में दो प्यारी परीयां आई । सतीश भी बहुत खुश था.........." परियों के आने के बाद।बेटीयो के आने के बाद एक दिन एक नई कंपनी से फोन आया और सतीश को अच्छे वेतन पर वहां काम मिल गया।
बच्चे जैसे जैसे बड़े हो रहे थे। सतीश में जिम्मेदारियों का एहसास भी बढ़ रहा था। बिना सोचे समझे एक भी पैसा खर्च नहीं करता था। " एक बार जब सतीश को मासिक वेतन मिला तब उसका मन हुआ। एंड्रॉयड फोन खरीदने का वह अपने की पैड वाले फोन से उब चुका था " । तो पहुंच गया। मोबाइल में स्टोर एक मोबाइल भी पसंद आया। वह उस मोबाइल को उलट पलट कर देख ही रहा था। तभी सरला देवी का फोन आ गया।
हां, सरला......
" कल सोनू की स्कूल की फीस भरनी है और मां का चेकअप भी करवाना है। आप ज्यादा पैसे निकाल लाइएगा " ।
ठीक है.........चलो आता हूं। कहकर सतीश ने फोन काट दिया और" मोबाइल दुकानदार की तरफ मोबाइल को सरका दिया। मैं बाद में आता हूं। कहकर सतीश निकल गया" ।
कुछ समय के लिये सतीश मोबाईल प्रेम भुल गया। और फिर..........
कुछ महीने बाद " सतीश की इच्छा इलेक्ट्रॉनिक डायरी खरीदने की हुई वह फिर चल दिया और दुकान पर पहुंचा ही था कि उसके दोस्त का फोन आ गया। हेलो सतीश मेरे पैसे लौटा दे यार मुझे बहुत जरूरत है एक-दो दिन में ही लौटा देना " ।
ठीक....... ठीक है । कह कर फिर सतीश मायूस होकर लौट आता है। उसे याद आता है। 2 महीने पहले सरला को डॉक्टर के पास दिखाने के लिए उसने कुछ पैसे अपने दोस्त से उधार लिए थे।
सतीश फिर काम में मन लगा सब कुछ मन मे दबाये काम करता है ।
फिर से एक बार उसे आकर्षक मोबाइल खरीदने के का मन हुआ। " वह फिर से दुकान पर पहुंच गया। मोबाइल पसंद भी कर लिया था और जैसे ही वह पैसे निकालने के लिए वह.......सरला देवी का फोन आ गया.......
सुनो .......
कहो क्या बात है
वो , तनु और मनु के कॉलेज वालों ने क्लास में लेने से उन्हें मना कर दिया है क्योकि उनकी फीस बकाया है ना इसलिए।
ट्यूशन वाले सर भी पेमेंट करने के लिए बोल रहे थे। आप आते वक्त उन से बात करते हुए आइएगा" ।
सतीश को बहुत गुस्सा आया। पर क्या कर सकता था? वापस लौट गया ।और दोनों बेटियों की फीस भरी।
कुछ समय बाद सतीश का मन फिर मोबाइल खरीदने का हुआ। आज तो मैं मोबाइल खरीदते ही रहूंगा। अब तो बच्चों की फीस वगैरह सब जमा होकर यह पैसे मैंने बचाए और खुशी-खुशी मोबाइल शॉप पर पहुंच गया। लेटेस्ट सभी मोबाइल देख डाले और नए ब्रांड का सभी फंक्शन वाला मोबाइल पसंद आया। खरीदने का मन भी बना लिया। एहसास हुआ। यह 25 से ₹30000 का मोबाइल खरीद लूंगा और कहीं घर में पैसों की फिर तंगी और परेशानी हुई तो कहां से इंतजाम करूंगा।
उसे अचानक याद आया। इस हफ्ते तो उसकी दोनों बेटियों का जन्मदिन है। उन्हें कपड़े भी तो दिलाने है। केक भी तो लाना है और गिफ्ट भी।
नहीं नहीं। मैं अपने शौख के लिए अपने बच्चों की खुशियों के साथ समझौता नहीं कर सकता हूं। पहले वह मेरी जिम्मेदारी है।
यह शौक नहीं पूरा भी करूंगा तो क्या हुआ ?जब इतने साल निकल गए तो और सही या ना सही, परंतु मेरे बच्चे कभी किसी खुशी के लिए मोहताज नहीं होंगे।
"इस बार सतीश भारी मन से नहीं। अभी तो खुशी-खुशी घर लौट आया "।
अगले दिन ऑफिस में से जल्दी आ कर तीनों बच्चों को मार्केट ले जाकर कपड़े दिलाए और मां के लिए भी एक साड़ी ले आया। बच्चे अपनी पसंद का सामान लेकर खुश थे। उनके चेहरे पर आई हुई खुशी को देखकर अपनी खुशी मना रहा था । और अपनी मां के लिए लाई गई साड़ी को देखकर वह असीम सुख की अनुभूति कर रहा था। "
" पत्नी सरला जब सामान देखा तो सतीश से बोली, दो जोड़ी शर्ट आप अपने लिए भी ले आते सभी शर्ट की कॉलर फट गए हैं। रोज रोज वही चार शर्ट ऑफिस पहन कर जाते होगे "। मन भर गया होगा।
अंदर से मा भी चिल्लाई इन बूढ़ी हड्डियों के लिए नई साड़ी की क्या जरूरत थी? लल्ला । अब और कितने दिन जीना है।
सौ बरस मां सतीश बोलते हुए कमरे में अंदर आए और मां के गले लग गए। अभी तो बहुत साल तुम्हारा आशीर्वाद चाहिए। इतनी जल्दी जाने की बातें मत करो ।
और तुम दोनों । दोनों के लिए कुछ नहीं लाया। सरला ने मां के कदमों के पास बैठे हुए कहा, मांजी आपके चेहरे की खुशी आपका अपनापन और आशीर्वाद यही तो खुशी है। हम दोनों की । कपड़ों का क्या है? कितने भी पपहन लो मन नहीं भरता।
तभी सतीश बोला, " अब बच्चों की खुशी का वक्त है। मां यह खुश तो मैं खुश "।
कुछ साल बाद सतीश के बच्चे सभी अच्छी जगह पर नौकरी पर लग गए। " बेटा डॉक्टर बन गया। दोनों बेटियां आईपीएस ऑफिसर सतीश की मेहनत रंग लाई "।
एक दिन तीनों बच्चे अपने घर आए और सतीश का जन्मदिन था। इसलिए उपहार भी लेकर आए ।
पापा गिफ्ट खोलो ना प्लीज.......
हां बेटा......
सतीश ने उपहार खोलें। खोलकर देखा तो उसकी आंखो में आंसू आ गये ।
ये क्या बेटा.....
डिजिटल डायरी और दो मोबाइल से सतीश की आंखें डबडबा गई।
यह...... सब..... इन की क्या जरूरत थी बेटा ।
तीनों बच्चे एक सुर में बोले.........
जरूरत थी पापा । हमें पता है। " आपने कितनी बार ही हमारे लिए अपने मोबाइल खरीदने और ना जाने कितनी इच्छाओं को मारा है। अब हमारी बारी है "।
आपने हमें इस लायक बना दिया है , कि " हम अपने मां-बाप की इच्छाएं पूरी करने की कोशिश तो कर ही सकते हैं "।
परंतु दो मोबाइल का मैं क्या करूंगा ?
एक मां के लिए एक आपके लिए ।
" पापा हमें आशीर्वाद दीजिए कि हम आपकी तरह बन पाए और घरवालों का तथा देश जन हित में काम करें और आपका नाम रोशन करें "।
सतीश की आंखों में आज भी आंसू है। परंतु खुशी के आज उसको सरला की परवरिश पर नाज है।
आज उसका सीना गर्व से चौड़ा हो गया है कि वह तीन होनहार बच्चों का पिता है।