आज विपदा झर रही है
आज विपदा झर रही है
आज विपदा झर रही है
सुख सरों से तर रही है।।
आम की डाली में देखो
बौर कैसा लग रहा है
बीच उसके आम का वो
बीज कैसे उग रहा है
हैं भ्रमर गुंजार करते
तितलियां स्थिर रही है।।
बाग का हर फूल देखो
मेघ रव को सह रहा है
इस धरा के भ्रमर का मन
हर कली में बह रहा है
है न कोई बात नूतन
यह व्यथा तो चिर रही है।।