अपना सा अनजाना
अपना सा अनजाना
एक अनजाना सा चेहरा,
अक्सर ख़्वाब में आता है।
चाहूँ निहारना मैं उसे,
पर पल में छू हो जाता है। 1
उस धुँधली सी परछाईं में,
यह दिल क्या सुकून पाता है।
लाखों की महफ़िल में भी,
मन मेरा बहलाता है। 2
चाहे मुझसे कुछ कहना वह,
कुछ समझाना चाहता हैं।
इस क्षणिक सुखद संवाद से ,
न जाने क्यों घबराता है। 3
नहीं मालूम इस सिलसिले में,
कितना भ्रम समाता हैं।
हो हकीक़त या वहम मेरा,
पल भर सही, पर अपना सा अहसास जताता हैं। 4
तय किया है मैने, अब बस।
आज रोक लुँगी उसे,जी भर निहार कर बोल दुँगी उसे ,
तू कितना मुझे सताता है।
तुझसे रूबरूू हो कर यह कहुुँगी वह करूँगी,
सोच सोच कर मन मेरा इतराता है। 5
तेरे खयाल में कुछ ऐसी खो गयी,
पल बढ़ते रहे, रात ढलती गयी,
अब तो आसमान भी सुबह का वक्त बताता हैं।
आज पता चला नींद से ख़्वाब का कितना गहरा नाता है। 6