भूल गए हम
भूल गए हम
भूल गए शायद फिर तो
90 में पंडितों का
हुआ जो कत्लेआम यहाँ
नोआखली के दंगों का
वो इतिहास है कहाँ
हर बार उठाते हो अंगुलि
कलम के ठेकेदारों तुम
क्यों लिख नहीं पाते आखिर
क्यों भूल गए तुम आखिर
आजाद की वो कुर्बानी
सत्ता के ठेकेदारों ने
जब बेची थी अस्मत सारी
तुम्हें कहाँ याद होगा
विवेकानन्द का वो भाषण
कहाँ याद होगा आखिर
शंकराचार्य का संवाद यहाँ
समानता बसती है
जिसमें खोजते हो कमियाँ
देख लिया सोच कैसी है
चापलूस कलमकारों की
करो अनुराग शासन से
लाभ मिलेगा कहीं तुम्हें
पलकों पर बिठायेंगे
अन्य धर्मों के नेता भी
है भारत तो सनातन से
यही अक्षरशः सत्य है
सोच बदल सकते नहीं
क्योंकि
सोच तुम्हारी कुंठित है।