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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract

4.5  

Bhawna Kukreti Pandey

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बिना बात

बिना बात

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जिंदगी क्या है?

इस पर 

कुछ साल पहले तक

मन में कुछ न कुछ

घुमड़ता रहा है

और मैंने

अपने आप को 

कई रातों 

सवाल दर सवाल 

परेशान 

किया है

बहरहाल 

आज कल 

रातें अजीब से

सुकून में है 

और जिंदगी को कुछ 

उलझन हैं

की अब 

क्यों कुछ नहीं सोचता 

मेरा मन 

उसके बारे में।


लेकिन 

मन और जिंदगी के बीच

ज़हन को

हैरानी नहीं होती 

क्योंकि 

वो जानता है 

कि न तो मुझे

बुद्धत्व प्राप्त हुआ है

न जिंदगी मुझे

बड़े मजे ही

करा रही है। 


उसे सिर्फ अहसास है

कि 

शायद सीख लिया है 

देखना ,

जो भी चल रहा है

आस पास

इधर उधर या 

कहीं भी। 


और यह

सच ही तो है

एक उम्र पर 

दृष्टा हो जाना 

बेहद आसान 

कर देता है

दुनियावी सब कुछ

यहां तक कि 

जीना मरना भी।

और 

जो नहीं 

सीख पाते

वे उलझते रहते है

जिंदगी से

हर मोड़ पर 

उसके सही गलत होने को

खोजते हुए

जिंदगी के मायनों

और नाराज 

रहते हैं

औरों से और

खुद से भी

बिना बात ।


तो हां

दृष्टा हो जाना

या कम से कम

उ स तरह से रहना

आसान किए है

(मेरे) होने को।



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