ब्रो
ब्रो
शर्ट के बटन गले तक लगे थे उसके, पैंट का क्रीच भी था पूरा सीधा,
आंख पे चश्में थे गोल से, जूते चमक रहे थे भी कुछ ज्यादा,
लगा जैसे हैरी (हार्दिक पांड्या) के जमाने में आ गए हों दादा।
कोने का डेस्क मिला था उसको,
जिसके सामने बैठी थी राधा(बॉस),
इतना संस्कारी, दिखता ब्रह्मचारी मानो
नाम होना चाहिये इसका मर्यादा।
हमने सोचा मिल गए हमे भैया जी,
राधा तो राधा गोपाल (चाय वाला)
तक भी उसे स्वहित के लिए नचाता।
बदलाव की प्रकृति तो देखो
शर्ट के बटन तो लगते नहीं
अंदर से दिखता एवेंजर का टीशर्ट।
पैंट की जगह अब जीन्स ने ले ली
और जूतों ने भी बदला रंग।
राधा को कृष्णा मिल गए,
गोपाल को मिलने लगे नोट।
अब और क्या बताऊँ बस समझो
भैया जी अपने बन गए ब्रो।