दहेज : दान या डकैती
दहेज : दान या डकैती
इंद्र के दरबार में देवों दैत्यों की बैठक हुई,
आने वाले युगों युगों की इस बैठक में चर्चा हुई,
बैठक में जो विचार था, विधेयक कुछ इस प्रकार था,
देवदल दैत्यदल कौन किस युग का कितना हिस्सेदार था,
निर्णय कुछ इस प्रकार था,
देवों का तीन युगों पर अधिकार था,
दानव दल तो केवल कलयुग का हक़दार था...
कालांतर में कलयुग आया,
दैत्यों ने शासन कुछ यूं बढ़ाया,
अमूर्त दानवों को धरा पर भिजवाया।
किस किस की हम बात करें,
सबने अपना रंग दिखाया,
एक दानव ऐसा आया उसने देवी को ही मोहरा बनाया,
कभी जुल्मी बाप बन उसे गर्भ में ही मरवाया।
कभी पाप सोच बन उसका शील अस्तित्व चुराया।
मानव की सोच पर कलयुग जब सवार हो जाता है,
हर कर्म में , हर धर्म मे स्वार्थ नज़र आता है।
दैत्य सत्ता तब अहसास दिलाती है,
लक्ष्मी की खातिर जब गृहलक्ष्मी जल जाती है।
अन्नपूर्णा बनकर शायद दहेज दैत्य की भूख मिटाती है,
ऐसे भोजों से दानव के लालच की आग कहाँ बुझ पाती है,
हर बलि के बाद दुष्ट की शक्ति दुगुनी हो जाती है।