एक देश की बेटी
एक देश की बेटी
शुरू करे हम पुन: काल से, वो सम्मान बनाया था,
औरत को देवी का दरजा देवों ने ही दिलवाया था।
सोचा था सम्मान करेगा, औरत का सत्कार करेगा,
देवी नाम की ऊर्जा दे कर सोचा देश का कल्याण करेगा..
पर क्रूरता समाज पर भारी थी ध्यान से तो देख पगले वो एक नारी थी,
तूने ना उसका सम्मान दिखाया, ना आदर सत्कार दिखाया,
तूने भरे समाज में जाकर अपनी हैवानियत का किरदार निभाया।
तू ये मत सोच, कि तू बच जाएगा, पहले जो बच कर चले गए वो दोबारा नहीं दोहराएंगे,
कसम है भारत वासी की तुझे फांसी तक पहुंचाएंगे।
आने वाले समाज को भी हम कुछ ऐसा दिखाएंगे,
जब धरा पर हो इज्जत हमारी तो 36 मर्द बचाएंगे,
अपने देश की इज्जत बचाना इंसान का धर्म है,
और जब बात हो औरत के सम्मान की जो मर्द पीछे हट जाए वो मर्द ही नामर्द है ...
-- देश की हर बेटी से बस मेरा एक ही कहना है
तुम लक्ष्मी हो, तुम दुर्गा हो, तुम रौद्र रूप वाली काली हो।
माथे के हर तिलक की तुम ही तो लाली हो, तुम सुंदरता हो, तुम सम्मान हो,
तुम हमारा अभिमान भी हो, गीता-वीध पुराण में सिखाया हमारा ज्ञान भी हो।
पर तुम भी अपनी ताकत को एस्से नि निचवार करना है,
जो हाथ तुम्हारी तरफ बड़े, हर हाथ तुम्हें समझ न है।
जो सही लगे वो सही है, गलत की तुम भी बढ़ कर आवाज बनो,
जो आवाज कमजोर पड़े भेद में तो तुम हाथों से अपना उधार करो,
याद करो उस काली को अरे तुम उसका तो सम्मान करो ,
जो गलत है अपने कर्मों से तुम उसका बहिष्कार करो,
तब भी ना समझे धित अगर वो तुम उसको रास्ते से साफ करो।