हर क्षण जंग है
हर क्षण जंग है
हर क्षण जंग है
रंग मंच नहीं यह रण है,
अपने से हारे वह कैसा नर है?
निंदा- निंद्रा को जीत ले,
वही लिखता नए प्रसंग है।
तपती भू को चुम ले,
मरुधरा में जो अंकुर नए ढूंढ ले,
काट के पहाड़ को समतल भू बना लें,
वही भरता दम है।
हर क्षण जंग है
रंगमंच नहीं यह रण है।
किस्से-कहानी बीता वक्त है,
रचे जो नया हर दिन इतिहास
वही तुलसी का सच्चा भक्त है
तिरस्कार से पुरस्कार का सफ़र,
नहीं काम है,
ना डगमगाने दे हौसलों को,
वही सच्चा नर है ।
हर क्षण जंग है,
रंग मंच नहीं यह रण है।
हार नहीं छोड़ती, हार को ही छोड़ दो
मंत्र यही जीत है।
कर ले कोई यतन कितना भी,
झुंड से पृथक कितना भी,
पुकार में जिसकी दहाड़ है
पीछे चलता उसके संसार है,
कदमताल करता नया काफ़िला ही,
सामने वाले की हार है।
हर क्षण जंग है
रंगमंच नहीं यह रण है।
दहक कर चमकता वही इंसान है
काबिलियत जिसकी पहचान है,
ऐ !खुदा तू रहे सदा,
तू ही तो इस रण का सूत्रधार है,
जानता सारे परिणाम है।
हर क्षण यहां जंग है
सांसें कम है,
रंग मंच नहीं यह रण है।