खा जाएगी श्वेत परी
खा जाएगी श्वेत परी
जलता रहा सिंगार, जिंदगी,
घरभर की जल जाएगी।
बचा सके तो बचा ले विपदा,
रही सही टल जाएगी।।
धूम्रपान का धुआं फेफड़ों,
में जाकर भर जाता है।
जला फैफड़ों को देता है,
जुल्म बड़ा ही ढाता है।।
जिसदिन करदे काम फेफड़े,
बंद, न सूरज निकलेगा।
जाने कब ये जान देह से,
निकलतेरी छल जाएगी।
बचा सके तो बचा ले विपदा,
रही सही टल जाएगी।।
जीवन को बर्बाद ना कर तू,
जीवन है अनमोल धरा।
बच्चे अभी बड़े करने हैं,
जिम्मेदारी तोल जरा।।
जिन खुशियों में घुन लग जाता,
धीरे-धीरे मर जाती।
जीवन की रोशन बाती, बुझ,
आजनहीं कल जाएगी।
बचा सके तो बचा ले विपदा,
रही सही टल जाएगी।।
तू "अनंत" मदहोश न बन यूँ,
खा जाएगी श्वेत परी।
ऊपर से सुंदर दिखती है,
अंदर से है जहर भरी।।
रहते समय न रोका इसको,
बढ़े हौसले इसके तो।
एक दिन कालिख तेरे मुंह पे,
यही परी मल जाएगी।
बचा सके तो बचा ले विपदा,
रही सही टल जाएगी।।