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Lakshman Jha

Romance

4  

Lakshman Jha

Romance

कल्पना

कल्पना

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कभी हम ख्यालों डूब जातें हैं 

कभी इस किनारों से उस छोर को

छूने की ललक होती है 


दिल के दरवाजों पे

ना जाने कौन- कौन सी परी आके

हमें दस्तक दे के हमें बुलाती है 

कहती है हमें अपनी कविताओं में तो

उतार कर देख लो 


मेरा रूप यौवन निखर जाएगा 

और तुम्हारी कविताओं में मेरा रस,

शृंगार,भंगिमा और तन का सुगंध 

खिल जाएगा वैसे आपकी कलमों के


लाखों मुरीद होगें और चाहेंगी

अपनी मुसकानों से आपको रिझाएं

रंग बिरंगे फूलों की मलाओं को

आकर्षित सुगंधों से भर कर के 

मेरे ग्रीवा में उसको पहनाएं 


दरवाजे को खोल उसे हमने 

स्वागत से अपने पास बिठाकर आदर, 

अभिनंदन, आभार किया


मेरी कविता को नया रूप रस,

अलंकार, सौंदर्य, स्नेह सुगंध

और प्रेम का सौगात दिया !


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