कविताएँ
कविताएँ
कृष्णा या कान्हा कहें, मोहन माधव श्याम।
परमेश्वर के इस तरह, कई और हैं नाम।।
कई और हैं नाम, शब्द लगते हैं बौने।
प्रभु हित तीनों लोक,हाथ के मात्र खिलौने।
कर लें उनका ध्यान,मिटेगी मन की तृष्णा।
कर देते उद्धार, भक्त का मोहन कृष्णा।।
२
बढ़ता है जब-जब यहाँ, अतिशय पापाचार।
हर युग के अनुरूप ही, हुआ कृष्ण अवतार।।
हुआ कृष्ण अवतार, पाप का नाश किया है।
भक्तों को दे त्राण, दुष्ट को दंड दिया है।।
गीता सा सद्ज्ञान, मिला तो जग है पढ़ता।
आते मोहन कृष्ण, पाप जब अतिशय बढ़ता।।
३
गीता में तो है भरा, तत्वज्ञान का सार।
जिससे होता है सुलभ, नर तन का उद्धार।।
नर तन का उद्धार, पार्थ थे मात्र बहाना।
कृष्णा की थी चाह, जगत को भिज्ञ कराना।।
त्राहि-त्राहि सर्वत्र, धरा थी जब भयभीता।
देने आये कृष्ण, अलौकिक अनुपम गीता।।