मैं अध्यापक नहीं ...!
मैं अध्यापक नहीं ...!
मैं अध्यापक नही
भेड़ चाल हो गया हूं,
व्यवस्था का मारा हर दिन
टूट कर बिखरता रहता हूं,
कहीं विद्यालयों में सूनापन देख
खुद को कोसता हूं
कहीं बच्चों की भीड़ में
दुबका कहीं बैठा रहता हूं,
हर दिन हर पल
नई गाथा मैं रोज लिखता हूं
मैं कुछ भी हो सकता हूं
लेकिन अध्यापक कतई नहीं हो सकता हूं।
नित नए नए प्रयोग
मेरे विद्यालय में होते रहते हैं
विभाग के हुक्मों का भार
व्यवस्थाओं के रूप में ढोते रहते हैं,
हर जगह मेरी उपस्थिति
हर दिन नई डाक जरूरी है,
शिक्षण को छोड़कर बस
हमारे लिए नई नई ट्रेनिंग जरूरी है,
पत्राचार में पन्ने लिखते लिखते
बस माथा घिसता रहता हूं
मैं कुछ भी हो सकता हूं
लेकिन अध्यापक कतई नही हो सकता हूं।
विद्यालय में बैठे बैठे भी
हम पोर्टल में घुसे रहते हैं
नित नए रोज हम यहां वहां के
उलजलूल डाटा भरते रहते हैं,
कभी जातिवार सूचना देनी होती है
कभी छात्रवृत्ति की लिस्ट दोहरानी होती है
पोर्टल पर कितने चढ़े
ड्रॉपआउट की लिस्ट बनानी होती है,
कितने बच्चे नामांकन हुए कितने विद्यालय छोड़ गए
बस इसी में मैं उलझा रहता हूं,
मैं कुछ भी हो सकता हूं
लेकिन अध्यापक कतई नही हो सकता हूं।
रोज नया हिसाब
एक नई सूचना बनानी होती है
ड्रेस, जूते, बैग और
एमडीएम पकाने के लिए
लकड़ी की व्यवस्था करनी होती है,
कितने चावल के बोरे आए
ईको क्लब में कितने गमले और फूल लगाए,
स्पोर्ट्स के कितने आइटम लाने है
दीवारों में कौन सी पेंटिंग सजाएं,
बस इसी में दिन रात मैं उलझा रहता हूं
मैं कुछ भी हो सकता हूं
लेकिन अध्यापक कतई नही हो सकता हूं।
कभी प्रपत्र नाइन की चिंता
कभी शौचालय की सफाई देखना होता है,
एसएमसी की मीटिंग लेकर
अभिभावकों को हर बात सूचित करना होता है,
बच्चों के बैंक अकाउंट खुलवाने है
ऑनलाइन मार्क्स भी अपलोड करवाने है,
फोलिक एसिड आयरन की गोलियों का
सदा हिसाब रखना होता है,
अतिरिक्त पोषण में बच्चों को क्या खिलाऊं
बस इसी उधेड़ बुन में फंसा रहता हूं,
मैं कुछ भी हो सकता हूं
लेकिन अध्यापक कतई नही हो सकता हूं।
क्या शासन, क्या प्रशासन
सबको मेरी खबर रहती है,
मेरे आने जाने पर
हर किसी की नजर रहती है,
चुनाव हो या कोई आयोजन
सबको मेरी जरूरत होती है,
बस मेरी अहमियत मेरी छुट्टी
सबको सदा नागवार गुजरती है,
मेरे बिना पत्ता क्या
विभाग का कोई काम नहीं हो सकता है,
मैं कुछ भी हो सकता हूं
लेकिन अध्यापक कतई नहीं हो सकता हूं।