मेरी कविता बनोगे क्या???
मेरी कविता बनोगे क्या???
सुनो, लिखती हूँ मैं, जानते हो न ?
तुम पढ़ना पसंद करोगे क्या ?
दुनिया सिर्फ वो चंद शब्द पढ़ेगी,
तुम ज़ज़्बातों तक उतरोगे क्या ?
ज्यों अब ज़र्रे-ज़र्रे में तुम समा गए हो मेरे...
तो सुनो न!
तुम ही मेरी कविता बनोगे क्या ?
सुनो, कलम मेरी सूख-सी रही है,
तुम अपने इश्क़ से गीला करोगे क्या ?
रंग सारे मिट गए है मानों उसके,
तुम भर प्यार अपना उसे रंगीन करोगे क्या ?
ज्यों अब ज़िन्दगी ही बन गए हो तुम मेरी...
तो सुनो न!
तुम ही मेरी कविता बनोगे क्या ?
सुनो, एहसास पनप रहे ज़ेहन में कुछ,
तुम दिल लगाकर सुनोगे क्या ?
कुछ मीठा-मीठा सा पक रहा है दिल में,
तुम लबों से अपने चखोगे क्या ?
ज्यों साँसों में घुल ही गए हो तुम मेरी...
तो सुनो न !
तुम ही मेरी कविता बनोगे क्या ?
सुनो, कुछ शब्द मचल रहे आने को होठों तक,
उन्हें समेटकर शांत करोगे क्या ?
हर कविता रही अधूरी-सी आजतक मेरी,
तुम संग उसके अब मुझे भी पूरा करोगे क्या ?
ज्यों दिल धड़कने की वज़ह बन ही गए हो मेरे...
तो सुनो न !
तुम ही मेरी कविता बनोगे क्या ?