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Simpy Aggarwal

Romance

4  

Simpy Aggarwal

Romance

मेरी कविता बनोगे क्या???

मेरी कविता बनोगे क्या???

1 min
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सुनो, लिखती हूँ मैं, जानते हो न ?

तुम पढ़ना पसंद करोगे क्या ?

दुनिया सिर्फ वो चंद शब्द पढ़ेगी,

तुम ज़ज़्बातों तक उतरोगे क्या ?

ज्यों अब ज़र्रे-ज़र्रे में तुम समा गए हो मेरे...

तो सुनो न!

तुम ही मेरी कविता बनोगे क्या ?


सुनो, कलम मेरी सूख-सी रही है, 

तुम अपने इश्क़ से गीला करोगे क्या ?

रंग सारे मिट गए है मानों उसके,

तुम भर प्यार अपना उसे रंगीन करोगे क्या ?

ज्यों अब ज़िन्दगी ही बन गए हो तुम मेरी...

तो सुनो न!

तुम ही मेरी कविता बनोगे क्या ?


सुनो, एहसास पनप रहे ज़ेहन में कुछ,

तुम दिल लगाकर सुनोगे क्या ?

कुछ मीठा-मीठा सा पक रहा है दिल में,

तुम लबों से अपने चखोगे क्या ?

ज्यों साँसों में घुल ही गए हो तुम मेरी...

तो सुनो न !

तुम ही मेरी कविता बनोगे क्या ?


सुनो, कुछ शब्द मचल रहे आने को होठों तक,

उन्हें समेटकर शांत करोगे क्या ?

हर कविता रही अधूरी-सी आजतक मेरी,

तुम संग उसके अब मुझे भी पूरा करोगे क्या ?

ज्यों दिल धड़कने की वज़ह बन ही गए हो मेरे...

तो सुनो न !

तुम ही मेरी कविता बनोगे क्या ?


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