मिलन
मिलन
नयनों से नयन का मिलना तो,
कोई ऐसी निराली बात नहीं,
मिल जाए अगर जो मन से मन,
कोई उससे हसीन मुलाकात नहीं।
मैं तो हूं एक बहती नदिया,
तुम मेरा किनारा बन जाओ,
मुझे प्रेम से अपने बांधो तुम,
फिर मेरे सदा ही कहलाओ।
मैं हूं जैसे अतृप्त धरा,
तुम अल्हड़ सावन बन जाओ,
और प्रेम के काले बदरा को,
मुझ पर तुम झूम के बरसाओ।
मैं हूं जैसे चंचल तितली,
मदमस्त पवन तुम बन जाओ,
और अपने प्रेम के झोंके से,
मेरे पंखों को आ सहलाओ।
लुक-छिप कर मिलते हैं सब ज्यों,
तुम ऐसे मिलने ना आना,
कोई हमें जुदा ना कर पाए,
कुछ ऐसे मुझ में मिल जाना।
क्योंकि...
नयनों से नयन का मिलना तो,
कोई ऐसी निराली बात नहीं,
मिल जाए अगर जो मन से मन,
कोई उससे हसीन मुलाकात नहीं।