मन
मन
चंचल मन की इच्छाएं अनन्त ,
सन्तोष नही ,ना शान्त ये मनहर पल ले नयी इच्छाएं जन्म,
हर चीज को पाने का करता मन,
इस रंग रंगीली दुनिया से,
हर दिन प्रेरित होता ये मन
एक क्षणिक सुख के बाद,
मन में उपजे नए सुख की चाह
जब ना हो मन की तब ,
माता पिता, भाई बन्धु ,सखा संगी
सब लगे महत्वहीन जग भी बेगाना ,
हर पल रहे उदासीन ये मन
मन की अथाह इच्छाओं के सागर का कोई अंत नहीं
पिंजरे के पंछी के समान मन हरदम व्याकुल सा रहता है
मन के चक्कर मे पड़कर दिन गिन गिन सुख दुःख के
भंवर में बिताते हैं
मन के इस मकड़जाल को तोड़कर चलो थोड़ा ऊपर उठ जाते हैं
मन के काबू में ना होकर जब मन को काबू में करते हैं।
तब जीवन का सच्चा सुख और जीने का ढंग सीख पाते हैं
जो लिखा भाग्य में होगा वही
तो व्यर्थ मन को व्यथित करना क्यों
चंचल मन को काबू में करके लाभ हानि की चिंता छोड़ अच्छे कर्म करे हम जीवन में
ईश्वर जिस दिन चाहेगा उसदिन ही होगा कार्य सफल
हम सब ईश्वर के हाथों की कठपुतली रंगमंच पर अपना रोल निभाते हैं।
मन को ईश्वर में रमा डाले भक्ति भाव से भर जाए
लोभ मोह के माया से ऊपर उठकर
सच्चे मन से मानवता की सेवा एवं रक्षा करें .