बहु
बहु
अपनों की महफ़िल में बेगानी हूँ, मैं
क्योंकि जनाब बहु हूँ, मैं
जुबाँ से अपनी, दिल से परायी हूँ, मैं
क्योंकि जनाब बहु हूँ, मैं
ससुराल के हर दायित्व निभाती हूँ, मैं
फिर भी अधिकारों से वंचित हूँ, मैं
क्योंकि जनाब बहु हूँ, मैं
नालायक़, निर्लज्ज, कामचोर
चली जा अपने बाप के घर
जैसे ताने हर रोज सुनाए जाते है
क्योंकि जनाब बहु हूँ, मैं
हर एक कि असलियत जानती हूँ,
कौन कितना अच्छा और कौन कितना सच्चा है,
फिर भी हर बार औकात मेरी नापी जाती है,
कमियां ढूंढ-ढूंढ के निकली जाती है,
क्योंकि जनाब बहु हूँ , मैं
कहकर बहु नहीं बेटी है, ये
जो विदा करा कर लाये थे
बहु क्या? जनाब अब वो
इंसान भी नहीं समझते है,
क्योंकि जनाब बहु हूँ, मैं