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Sudha Sharma

Abstract Classics Others

4  

Sudha Sharma

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प्रकाश

प्रकाश

1 min
4


रोशनी


 हे! तमस कितना प्रबल तू, रोशनी से जीत न पाएगा ।

सृष्टि का कण-कण तृण- तृण रोशनी की गुहार लगाएगा ।।


हां कभी-कभी ब्रह्मांड में तमस राज बढ़ जाता है, 

दिनमान की क्षीणता का तनिक आभास कराता है ।

लेकिन सूर्य का वादा है वह सागर गर्त से आएगा, 

अपने अश्वों को दौड़ा कर नभमंडल पर छा जाएगा।


सृष्टि के जर्रे -जर्रे को पावन जीवन सोम पिलायेगा।

 हे! तमस कितना प्रबल तू रोशनी से जीत ना पायेगा ।। 


अमां की गहन रात्रि और गगन सितारों से जड़ा,

न इतना सामर्थ्य की सके दिनमान से आंखें लड़ा ।

पदचाप सुन रोशनी की तम नाता तोड़कर जाएगा,

 सृष्टि का जर्रा- जर्रा फिर नव रोशनी से नहाएगा ।


धरा गर्त में सोये बीजों को प्यारी थपकी दे सहलाएगा ।

हे तमस कितना प्रबल तू रोशनी से जीत ना पायेगा ।।


 युग और सदियां बीत गई तम रोशनी के संघर्ष में ,

होता है अस्तित्व जहां का रोशनी की पावन तपिश में ।

रोशनी की विजय का साक्ष्य  श्रेष्ठतर न मिल पाएगा । 

रोशनी का विजय रथ निरंतर ही बढ़ता जाएगा ।


घोर अमां के गहन तम का सदा झूठा दम्भ मिटाएगा।

हे तमस कितना प्रबल तू रोशनी से जीत ना पाएगा।।


 चहकते पंछी छत पर रोशनी आवन की सूचना दें,

नभ में पंछी गीत गाएं सम्मान में कूके कलरव करें।

रोशनी आगमन पर पुष्प अधखिला न रह पाएगा, 

स्व महत्व रश्मिपुंज तमस को पुनः पुनः समझाएगा।


रश्मिरथी स्वयं उपस्थिति से जग का संताप मिटाएगा।

हे तमस कितना प्रबल तू रोशनी से जीत ना पायेगा।।



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