आपसी समझौता
आपसी समझौता
कोई तो हो साधन,हम हृदय में बस जाएं।
लोगों से प्यार मिले, स्मृति पटल पर छा जाएं।।
चलो हम भी प्रसिद्धि पावन रस है चूमते ।
साधन न अन्य कोई साहित्य आंगन झूमते ।
समझौता आपको कुछ हमसे करना यूं है ।
जैसी भी हो रचना वाह वाही जड़ना है।।
तुम मेरी प्रशंसा से कभी मुंह न मोड़ना ।
रचना की शान में कसीदे गढना न छोड़ना ।।
करता हूं सच्चा वादा पूरा जोर लगाऊंगा।
साहित्य यात्रा में चांद तारे जडाऊंगा ।।
बेचारों को मिला इक साहित्य मंच बनाएंगे ।
उनकी सुनेंगे अपनी कविता सुनाएंगे ।।
आयोजन का सिलसिला अबाध्य जारी करें ।
मंच की साझेदारी निष्ठा से विभक्त करें ।।
सम्मान प्रदान करना बारम्बार तुम प्यार से।
हम भी सवारेंगे तुमको फिर जोर शोर से।।
साहित्य काफिला यूं ही सदैव चलता रहे ।
प्रसिद्धि का पावन ध्वज नित गगन चूमता रहे ।।
कभी श्रोता तुम बनो कभी श्रोता हम बने ।
समझौते टोटके से जमीन आसमान हिले।।