पतंग
पतंग
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सूने आकाश में किसी पतंग की तरह
अचल पानी में एक तरंग की तरह,
राखी के धागे की दूसरी डोरी
बहने जैसे लंबी अकेली रातों की लोरी।
रंगोली के रंगों सी
नन्हे से बच्चे के मन में उठती तरंगो सी,
जून की गरमियों में पीपल की छाओं जैसी
बहने होती हैं सावन की हवाओं जैसी।
ना ढूँढती कभी संगी साथी
ना कभी अलग थाली में खाती,
कभी माँ तो कभी सखी
एक दूजे की बातों से जो कभी ना थकी।
एक वृक्ष की दो डाली
कभी धरा जैसी स्थिर कभी चंचल, मतवाली
एक ही माँ के आँचल की फुलवारी,
माँ-बाप को स्नेह और धैर्य देने वाली।
आँचल की ओट सी होती हैं बहने
इनके बचपन के क़िस्सो के तो क्या कहने,
अलग होके भी जो अलग ना हो
तत्पर रहती हैं एक दूजे के ग़म सहने।