पत्थर का चरित्र
पत्थर का चरित्र
कभी बच्चों का मन बहलाता स्कूल से घर लाता
कभी तालाब को चिढाता हुआ उसके ऊपर से चीरता चला जाता
तो बहनों के घर बैठ के गिट्टे खेलने का ज़रिया बन जाता
ये पत्थर का चरित्र ही है जो सबको खुश कर जाता
घरोंदे बन के ख़ुद में हमें पनाह देता
तो कभी भूकम्प ज़लज़ले में विनाशकारी लीला रच लेता
शिल्पी के हथौड़े की चोट खा के बुत बन जाता तो कभी हो
के भगवान् हमसे हाथ जुड़वां लेता
ये पत्थर का चरित्र ही है जो भाँति रूप दिखाता
दादी के बनाये पापड़ और चिप्स की साड़ी उड़ ना जाये इसका ख्याल रखता
पता नहीं मम्मी के धोये कितने ही कपड़ों को दबाकर सुखाता
तो बचपन में हमें आम, अमरूद और अनार तोड़कर खिलाता
ये पत्थर का चरित्र ही है जो बच्चों बूढ़ों सबके साथ दोस्ती निभाता