sm# टास्क-4 भटकती प्यासी रुह
sm# टास्क-4 भटकती प्यासी रुह
चढ़ता जब आफताब पहाड़ों पर,
तेरे दीदार को उतरे एक प्यासी रुह,
गिरती बर्फ जब पहाड़ों पर,
तेरे दीदार को मस्तानी एक प्यासी रुह,
दिन घिरने लगे जब पहाड़ों पर,
तेरे दीदार को भटके एक प्यासी रुह,
ढलने लगे जब शाम दीवानी पहाड़ों पर,
तेरे दीदार को तरसे एक प्यासी रुह,
निशाचर का आगोश जब पसरे पहाड़ों पर,
तेरे दीदार को व्याकुल एक प्यासी रुह,
सैलानी जब विचरें पहाड़ों पर,
तेरे दीदार की निगाहें खोजें एक प्यासी रुह,
नव युगल जब बाहों में बाहें डाले डोलें पहाड़ों पर,
तेरे ही दीदार का अक्स सब में खोजें एक प्यासी रुह,
हर पल पहाड़ों पर दर-दर भटके एक प्यासी रुह,
हर पल बोले वो प्यासी रुह,
भटक रही हूं मैं वर्षों से इन पहाड़ों पर,
कब मेरे इंतजार का होगा आखिरी पल,
उस दिन उस हादसे में,
तू जीवन पा जाये, तेरा जीवन बचाने को ही तो,
मैंने रब से मांगा,
चाहे मैं बन जाऊं,
भटकती प्यासी रुह,
पर बच जाए मेरे सजना तू,
और फिर आएगा अवश्य
मुझको मुक्ति दिलाने
बन कर एक दिव्यात्मा अवश्य ही तू।।