सपने
सपने
आखिर क्यों ये उजाले में चुभते है
सपने ही तो हम बंद आँखों से देखते है
दिन के उजाले में सारा काम करते है
रात को ही तो सपनों में खुशियों को निहारते है
सुबह को समाज हमें सच्चाई से रूबरू करवाता है
निशा में हम सपनों से कल्पना की उड़ान भरते है
सुबह और रात की दिनचर्या के बीच
शाम को हम सब आराम फरमाते है
फिर भी सच्चाई की दुनिया से परे हम
अपने सपनों का आशियाना सजाते है...