सुबह
सुबह
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अलसाई सी आंखों को मलते,
मैं बालकनी में आ बैठी,
उफ्फ! कितनी बेचैनी थी रात
नींद ही नहीं आयी ठीक से
और मैने कुर्सी पर टेक लगा,
आंखे बंद कर ली.. !
सूरज की किरण ने
जब मेरा माथा चूमा,
तो आंख खुली..
अपने बायें देखा..
गेंदा के पौधे पर फूल खिला था..
दायें देखा तो गौरैया दाना चुग रही थी..
फिर एक उम्मीदों से भरी शांत सुबह थी,
और इस शांति को भेदती,
पड़ोस से अदरक कूटने की आवाज आ रही थी..!!