सूरज का कहर
सूरज का कहर
सूरज राजा क्यों अभी से तुम,
इतने...तेवर दिखलाते हो।
गलती क्या हुई हमसे कोई,
जो ऐसे आँख दिखाते हो।
सर्दी में तो डर के मारे,
कोहरे में जा छिप जाते थे।
अरे वाह! रवि हम निरीह पे अब,
सारी ताकत दिख लाते हो।
जनवरी में थे तुम चिल करते
लंच करके ही निकल के आते थे
अब ऐसी क्या जल्दी "दिनकर"
जो सुबह ही सर चढ़ जाते हो।
पत्नी से क्या कर ली है लड़ाई,
जो घर पर टिक न पाते हो।
"आदित्य" जी घर का गुबार
क्यों जनता पर ऊतार के जाते हो।
पौधे सूखे.... सूखे तरुवर,
और कुऐं,ताल भी सूख रहे
अब कौन बचाऐ "तपनकर" से,
पंछी.. भी छांव हैं ढूंढ रहे।
तंदूर...लगे है दोपहरी..
संध्या भी हीटर के जैसी
बाहर निकले अरे! कैसे हम
जब तमक रहे "अंशुमाली"।
पंखे तो कब के मुरझाये,
कूलर भी अब न काम करें,
घर के अंदर भी हे!दिनेश
बस ए सी से ही.. काम चले।
अप्रैल में भूना... बैंगन जैसे
मई, जून.. में अब क्या करोगे तुम
हम ही न रहे तो "अशुंधर"
फिर किस पर राज करोगे तुम।