तुम आओ!
तुम आओ!
जीवन की अगणित विभीषिकाओं में
झलकते एक ही रस का कारण समझाने...
तुम आओ!
मृग ऋतु के बदलने का,
बदलते अर्थों का संदर्भ समझाने...
तुम आओ!
साज है, सज्जा...
प्रियजनों के दीपस्तंभ भी।
सब को परिवेश देने,
उमंगों पर सवार,
अपनी सुगंध से महकाती...
तुम आओ!
तुम आओ!!