वक्त-वक्त का फेर
वक्त-वक्त का फेर
सतयुग की जब बात करें, स्वर्ग पाताल हमें लोक मिले
एक पिता की दो संतान वो, देव, दानव उन्हें नाम मिले।।
समुद्र मंथन जब हुआ दोनों में, श्रेष्ठ जन हमें देव मिले
एक दूजे की काट में यारों, दानवों को देव से हार मिले।।
त्रेता आया कुछ परिवर्तन लाया, दोनों पृथ्वी पर आन मिले
सत्य, धर्म की उस लड़ाई में श्री राम हमें भगवान मिले।।
असंभव थी जब जीत रावण की, हर वनचर में हमें देव मिले
कर्म भी ऐसा किया सभी ने, रावण को युद्ध में हार मिले।।
द्वापर में तो, इंसानों के गुण-दोष समान मिले
धर्म का रक्षक बने कृष्ण से, जग को गीता ज्ञान मिले।।
मनमानी ना चले मोह, माया की, सत-धर्म को कृष्ण का साथ मिले
शक्ति प्रदर्शन का बढ़ा दौर तब, अधर्म को धर्म से हार मिले।।
कलयुग आया सच दिखाया, दोहरे चरित्र इंसान मिले
मुंह पर राम बगल में छुरी, इंसान भेष में हैवान मिले।।
काम, क्रोध की सीमा कहीं ना, ना शांति का कहीं नाम मिले
मोह, माया में सभी लिप्त है, ना सेवा, समर्पित इंसान मिले।।
विश्लेषण ये चारों युग का, ना ध्यान, ज्ञान बिन सम्मान मिले
दो भाई संग रह ना पाये, अपवाद तो हमें हर काल मिले।।
सोचने वाली बात यही है, हर युग में, देव, दानव, शैतान मिले
सत्य, धर्म भी तभी सफल है, जब दया, करुणा साथ मिले।।