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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

Classics

श्रीमद्भागवत-२५६; भोमासुर का उद्धार और सोलह हज़ार एक सो राजकन्याओं के साथ भगवान का विवाह

श्रीमद्भागवत-२५६; भोमासुर का उद्धार और सोलह हज़ार एक सो राजकन्याओं के साथ भगवान का विवाह

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राजा परीक्षित ने पूछा भगवन

भगवान कृष्ण ने भोमासुर को

क्यों और कैसे मारा था

जिसने बंदी बनाया स्त्रियों को ।


श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित

भोमासुर ने छीन लिया था

वरुण का छत्र, अदिति के कुण्डल

और मणिपर्वत देवताओं का ।


राजा इंद्र द्वारका में आए

कृष्ण को करतूत कही सब उसकी

सत्यभामा को साथ ले कृष्ण

राजधानी पहुँचे भोमासुर की ।


प्रागज्योतिषपुर में प्रवेश करना ही

कठिन था, क्योंकि चारों और उसके

पहाड़ों की क़िला बंदी थी

फिर घिरा हुआ वो शस्त्रों से ।


फिर जल की एक खाई थी

आग की चार दीवारी भी थी

इसके भी भीतर मुर दैत्य ने

बिछा रखे थे घोर फंदे भी ।


भगवान ने गदा से पहाड़ों को तोड़ा

छिन्न भिन्न किया शस्त्रों को वाणों से

अग्नि, जल, वायु की दीवारों को

तहस नहस किया चक्र से ।


तलवार से काटा मुर दैत्य के फंदे को

और नगर के परकोटे को

भारी गदा से ध्वंस कर दिया

और बजाया पंचजन्य शंख तो ।


उसकी ध्वनि महा भयंकर थी

नींद टूट गयी मुर दैत्य की

उस के पाँच सिर थे और अबतक

सो रहा वो जल के भीतर ही ।


प्रचंड तेजस्वी वो था

पानी से निकला बाहर वो

उसने अपना त्रिशूल उठाया

दौड़ पड़ा मारने कृष्ण को ।


गरुड़ जी पर त्रिशूल चलाया

सिहंनाद किया पाँचों मुखों से

भगवान ने त्रिशूल काट दिया

मुखों में उसके वाण मारे थे ।


मुर दैत्य बहुत क्रुद्ध हुआ

भगवान पर गदा चलाई अपनी

देखें उनकी और गदा आ रही

भगवान ने चूर किया उसे भी ।


कृष्ण की और दौड़ा वो

कृष्ण ने चक्र ले हाथ में

बस खेल खेल में ही

पाँचों सिर काट लिए उसके ।


मुर दैत्य के सात पुत्र थे

पिता की मृत्यु से शोकाकुल थे वे

सेनापति बना पीठ दैत्य को

और भोमासुर के आदेश से ।


कृष्ण पर चढ़ आए वे

शस्त्रों से प्रहार करने लगे

यमराज के पास पहुँचा दिया

सभी दैत्यों को भगवान कृष्ण ने ।


पृथ्वी के पुत्र नरकासुर ने 

देखा संहार हुआ सेना का

क्रोध में भरकर नगर से वो

हाथियों की सेना लेकर निकला ।


भगवान को आकाश में देखा

शतधनी नाम की शक्ति चलाई

वाणों से भगवान मारें सेना को

हाथियों को मार रहे गरुड़ जी ।


आर्त होकर वो हाथी सब

युद्धभूमि से भाग खड़े हुए

त्रिशूल लेकर भोमासुर फिर

लड़ने लगा भगवान कृष्ण से ।


चक्र से सिर काट लिया उसका

देवता पुष्प बरसाने लगे

पृथ्वी कृष्ण के पास आयीं और

वैजंति, वनमला पहना दी उन्हें ।


अदिति माता के कुण्डल और

वरुण का छत्र उनको दे दिया

एक महामणि दो कृष्ण को

फिर उनको प्रणाम किया था ।


स्तुति करने लगीं भगवान की

‘ कहें प्रभु, आपके चरणों में

पड़े रहें सदा और आपको

बार बार नमस्कार करें ।


जगत की रचना करना चाहते तो

रजोगुण स्वीकार हो करते

और स्वीकार करो तमोगुण को

जब संहार हो करना चाहते ।


पालन करना चाहो जब इसका

स्वीकारो तुम सत्वगुण को

परंतु ये सब करने पर भी

इन गुणों में लिप्त ना हों ।


शरणागत, भय भंजन प्रभु

मेरे पुत्र भोमासुर का ये

पुत्र है, भगदत्त नाम इसका

अत्यन्त भयभीत हो रहा ये ।


चरणकमलों की शरण में लाई

अब मैं हूँ इसको आपके

करकमल सिर पर रखिए और

प्रभु इसकी रक्षा कीजिए ।


श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित

प्रसन्न हो पृथ्वी की स्तुति से

भगदत्त को अभयदान दिया और

महल में प्रवेश किया भोमासुर के ।


वहाँ जाकर भगवान ने देखा

सोलह हज़ार एक सो राजकुमारीयां

बलपूर्वक लाई गयी थीं जो

महल में रख छोड़ी थीं वहाँ ।


नर श्रेष्ठ भगवान कृष्ण को

जब उन स्त्रियों ने देखा

अत्यंत मोहित हो गयीं वे

मन ही मन सबने प्रण किया ।


परमप्रियतम श्री कृष्ण को

वरण किया पति के रूप में

सभी ने मन में ये निश्चय किया

कृष्ण ही पति हों मेरे ।


सोचें अभिलाषा पूर्ण हो और

अपने हृदय को प्रेम भाव से

चरणों में न्योछावर कर दिया

अपने प्रियतम श्री कृष्ण के ।


राजकुमारियों को सुंदर वस्त्र दिए

द्वारका भेज दिया उन सबको

इसके बाद भगवान श्री कृष्ण

चले इंद्र की अमरावती को ।


इंद्र ने कृष्ण की पूजा की

कृष्ण ने अदिति के कुण्डल उन्हें दिए

लौटते समय सत्यभामा के कहने पर

कल्प वृक्ष उखाड़ लाए थे ।


इंद्र तथा देवताओं को जीतकर

द्वारका में ले आए उसे

कृष्ण ने उसे लगा दिया था

बगीचे में सत्यभामा के ।


कल्पवृक्ष की गंध और मकरंद के

लोभी भोरें भी स्वर्ग के

कल्पवृक्ष के साथ ही

द्वारका में चले आए थे ।


परीक्षित देखो तो सही जब

काम बनाना था इंद्र को अपना

कृष्ण के चरणों का स्पर्श कर

सहायता की माँगी उनसे भिक्षा ।


परंतु जब काम बन गया

कृष्ण से ही लड़ाई ठान ली

देवता बड़े तमोगुणी होते

सचमुच में बड़े ही स्वार्थी ।


सबसे बड़ा दोष धनाढ्यता उनमें

धिक्कार है ऐसी धनाढ्यता को

कृष्ण ने पाणिग्रहण किया सबका

सभी राजकुमारियाँ थीं जो ।


लक्ष्मी जी का अंश सभी पत्नियाँ

कृष्ण ऐसे विहार थे करते

गृहस्थ धर्म के अनुसार ही

कोई साधारण मनुष्य करे जैसे ।


ब्रह्मा आदि बड़े बड़े देवता भी

वास्तविक स्वरूप को भगवान के

और प्राप्ति के मार्ग को उनके

सचमुच में नही जानते ।


उन्ही रमारमण भगवान कृष्ण को

इन स्त्रियों ने पति के रूप में

प्राप्त किया था और वे सभी

सेवा करतीं उनकी बड़े मन से ।


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