वो एक अजनबी
वो एक अजनबी
जो कभी न मेरे पास आया फिर भी ना
जाने वो कैसे दिल में समाया, खोने के डर ने
एक नया साहस दिलाया, जो अपना ना था
उसे भी अपना बनाया। मेरी हृदय की आग ने
किसी को इतना कैसे मनाया, ना जाने क्यों
अनजान फरिश्ते को मेरे दिल में बसाया l
मेरी महफिलों को कोई इतना पसंद आया,
उस की तारीफ़ में चांद तारों को मैं ना जाने
क्यों धरती पर लाया, महकी महकी हवाओं
ने उसी का नाम सुनाया, जो था कभी अजनबी
ना जाने क्यों उसे अपना बताया। सांसों
की आवाज़ ने धड़कन की गति को इस कदर
बढ़ाया, उसके कदमों की आहट ने
मेरी बेचैनी को हर महफ़िल में बढ़ाया।