ये मन पागल बावरा
ये मन पागल बावरा
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ये मन पागल बावरा,
चले हवा के तीर।
पल पल रोके खुद को,
रुक न सके कोई नीर।
चंचल किरणें उम्मीद की,
दिखा रहीं हैं पाथ।
हाथों की लकीरें ही,
देंगी अब मेरा साथ।
तन्हा जिंदगी गुज़री है,
चुन पतझड़ पात।
मोती सारे बिखर गये,
सीप समुद्र के पार।
उड़ती फिरती तितली जैसी,
मन गगन के पार।
जैसे पंछी की कसक,
सुन ले कोई पुकार।
आज यूँ ही सोच रही,
कैसे देखूँ प्रभात।
निशा की चादर गहरी है,
बिन अमावस पास।