यह कैसा प्यार है?
यह कैसा प्यार है?
तूने मुझको जी भर चाहा, इस बात से कुछ इंकार नहीं,
कोई और मुझे न देख सके ,क्यों यह तुझको स्वीकार नहीं।
अपनी पलकों के पिंजरे में, तूने मुझको है कैद किया।
यह कैसा प्यार है जिसने मेरे अरमानों को रौंद दिया?
पलकों में समाई हूँ तेरी, नफरत भी करूँ तुझसे कैसे?
कोई और न मुझको देख सके, लेकिन ये संभव हो कैसे?
यह प्यार नहीं है, डर है यह , और स्वार्थ तुम्हारे दिल का है।
इस प्यार को प्यार नहीं कहते, यह प्यार सिर्फ कुछ पल का है।
पिंजरे में मुझे कैद करके, सोचो क्या खुश रह पाऊँगी?
तेरी इच्छा की कैदी होकर, जीते जी मर जाऊँगी।
मेरे भी कुछ अरमान हैं, अपनी इच्छा से जीना चाहती हूँ।
मेरे कुछ संगी साथी हों, उनसे बतियाना चाहती हूँ।
यह नहीं समझ पाई अब तक, क्यों तुमको यह मंजूर नहीं।
कान खोलकर सुन लो अब, ये कैद मुझे स्वीकार नहीं।
जो खोट तुम्हारे दिल में है,अब जान चुकी हूँ मैं उसको।
पहचान चुकी हूँ बदनीयत, अब ठीक से तेरी नीयत को।
सब्जबाग दिखलाकर मासूमों को सम्मोहित करते।
फिर बना शिकार हवस का, उनकी अस्मत का सौदा करते।
कहते हो आँखों के रास्ते, मेरे दिल में उतर गई हो तुम।
अय रूप के भंवरे! यह सुनकर, मेरे दिल से उतर गए हो तुम।