Dinesh Dubey

Classics

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अधर्म का पथ

अधर्म का पथ

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महाभारत युद्ध के मध्य एक दिन शाम को युद्ध रुकने के पश्चात कर्ण केशव के पास जाकर उनके समक्ष खड़े होते हैं, । केशव उन्हे मुस्करा कर देखते हैं, ।

कर्ण श्रीकृष्ण से पूछता है ,"हे केशव मेरा जन्म होते ही मेरी मां ने मुझे त्याग दिया, क्या अवैध संतान होना मेरा दोष था? गुरु द्रोणाचार्य ने मुझे धनुर्विद्या नहीं सिखाया, क्योंकि मैं क्षत्रिय नहीं था। परशुरामजी ने शिक्षा दिया लेकिन अभिशाप दे दिया कि जिस वक्त मुझे विद्या की सर्वाधिक आवश्यकता होगी, उसी समय विद्या भूल जाऊंगा। क्योंकि उनके अनुसार मैं क्षत्रिय नहीं था।"


उत्तेजित कर्ण ने कहा " संयोगवश गाय को बाण लगा और उसके मालिक ने मुझे शाप दे दिया। द्रौपदी स्वयंवर में मेरा अपमान किया गया, माता कुंती ने आखिर में मेरे जन्म का रहस्य बताया और वो भी दूसरे बेटों को बचाने के लिए, जो भी दिया दुर्योधन ने दिया तो मैं उसकी ओर से न लड़ूं तो किसकी ओर से लड़ूं। इसमें मेरी भूल कहां है।"


कर्ण के प्रश्न पर भगवान कृष्ण के उत्तर अन्याय के पक्ष से लड़ रहे कर्ण के स्वयं को पीड़ित दिखाने और न्यायोचित ठहराने के प्रयत्न पर भगवान कृष्ण ने जो उत्तर दिया उससे कर्ण निरुत्तर हो गया।


भगवान कृष्ण ने कहा "मेरा जन्म कारागार में हुआ, जन्म से पहले ही मेरी हत्या की योजना बनाई जाने लगी थी। मृत्यु मेरा राह तक रही थी, जन्म के साथ ही माता-पिता से दूर कर दिया गया। तुम्हारा बचपन खड्ग, घोड़ा, धनुष और बाण के बीच उनकी ध्वनि सुनते बीता और मुझे ग्वाले की गौशाला मिली, गोबर मिला, खड़ा होकर चलना भी सीख नहीं पाया था तभी से जानलेवा हमले होने लगे। कोई सेना नहीं, कोई शिक्षा नहीं, लोग ताने देते थे कि उनकी समस्याओं का कारण मैं ही हूं।"


तुम्हारे गुरु जब तुम्हारे शौर्य की प्रशंसा कर रहे थे, मुझे उस आयु में शिक्षा तक नहीं मिली थी। मैं जब सोलह साल का हुआ तब ऋषि सांदीपनि के आश्रम पहुंच सका। तुम अपनी पसंद की कन्या से विवाह कर सके, मैंने जिससे प्रेम किया उससे विवाह नहीं हुआ, उनसे विवाह करने पड़े जिसे मैंने बचाया था, या जिन्हें मेरी चाहत थी। जरासंध से बचाने के लिए पूरे समाज को समुद्र किनारे बसाना पड़ा। युद्ध से पलायन के कारण मुझे भीरू कहा गया।


अगर दुर्योधन युद्ध जीतता है तो तुम्हें श्रेय मिलेगा।

धर्मराज युधिष्ठिर जीतता है तो मुझे क्या मिलेगा।।


एक बात याद रहे कर्ण, ये जीवन हर व्यक्ति के सामने चुनौतियां पेश करती है, वह किसी के साथ न्याय नहीं करती।*


दुर्योधन ने अन्याय का सामना किया है तो धर्मराज ने भी कम अन्याय नहीं भुगता। लेकिन सत्य धर्म क्या है तुम जानते हो। कोई बात नहीं कितना भी अपमान हो, जिस पर हमारा अधिकार हो वह हमें न मिल पाए, *महत्व इसका है इस समय तुम संकट का सामना कैसे करते हो*, ये रोना धोना बंद करो कर्ण, जिंदगी ने न्याय नहीं किया, इसका मतलब यह नहीं तुम्हें अधर्म के पथ पर चलने की अनुमति मिल गई।और तुम कुछ भी कर सकते ह



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